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बैनसम्प्रदायशिमा ॥ सो ! महा मारत मन्त्र में लिखा है कि
मयमांसाशन रात्री, भोजन कन्दभक्षणम् ।।
ये कर्षन्ति वृथा तेपा, तीर्थयात्रा जपस्तप ॥१॥ मर्यात् यो पुरुष मप पीते हैं, मांस सासे हैं, रात्रि में भोजन करते हैं और ये को साते हैं उन की वीर्ययात्रा, वप पोर तप सन पा है ॥ १॥ मार्कण्डेयपुराण का पपन है कि
अस्तंगते दिवानाथे, आपो रुधिरमुच्यते ॥
भन्न मांससमं प्रोफ, मार्कण्यमहर्पिणा ॥१॥ अर्थात् विवानाच (सूर्य) के मस्त होने के पीछे चल रुधिर के समान मौर अध मांस के समान कहा है, यह पचन मार्कणेय अपि का है ॥ १ ॥ इसी प्रकार महामारत मन्त्र में पुन कहा गया है कि
घस्वारि नरफमार, प्रथमं रात्रिभोजनम् ॥ परस्त्री गमनं चैव, सन्धानानन्तकायकम् ॥१॥ पे रात्री सर्ववाहार, वर्जयन्ति समेघस' ॥ तेषां पक्षोपवासस्प, फल मासेन जायते ॥२॥ नोदमपि पातम्य, राम्राषत्र युधिष्ठिर ॥
तपस्विनां पिशेषेण, गहिणां ज्ञानसम्पदाम् ॥३॥ मात-पार कार्य नरक के द्वाररूप हैं-ममम-रात्रि में भोजन करना, दूसरा पर मी में गमन करना, सीसरा संभाना (भाचार ) साना भौर चौमा-अनन्त काम मर्मात् मनन्त जीववाले कन्द मूह मावि वस्तुओं को साना ॥१॥ यो बुद्धिमान् पुरुप एक महीनेत निरन्तर राधिमोबन का स्याग करते हैं उन को एक पस के उपमास का फत प्राप्त होता है।॥ २ ॥ इस म्मेि हे युधिष्ठिर ! शानी गृहस को और निक्षेप कर वपसी को रात्रि में पानी भी नहीं पीना चाहिये ॥ ३ ॥ इसी प्रकार से सम शामों में रात्रिमा बन का निपेप किया है परन्तु अन्य के निखार के मय से भय विशेप प्रमाणों को नहीं रिसते हैं, इसलिये उद्धिमानों को उचित है कि सप प्रकार के साने पीने के पदार्थों का कमी भी रात्रि में उपयोग न फरें, यदि कभी प फठिन रोगावि में भी कोई दवा या खराक को रात्रि में उपयोग के न्येि बतमाये वो भी सभा धमय उसे रात्रि में नहीं लेना पाहिये किन्तु सोने से दो तीन भण्टे पहिले ही लेना पारिये, क्योंकि पन्य पुरुपयेही जो कि सूर्य की सादी से ही सान पान करके भपने प्रठ का निर्वाह करते हैं। १-पत्रिी के मारे जानु तप ऐती से पप, अमे-भात, मी कोरा और पाया भारि