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चतुर्थ अध्याय ॥
३११ तो हम दूध के प्रकरण में पहिले लिख चुके है, शेप कुछ पदार्थों को यहां लिखते है-~केला और छाछ, केला और दही, दही और उष्ण पदार्थ, घी और शहद समान भागमें तथा शहद और पानी वरावर वज़न में, ये सब पदार्थ सङ्गदोप से अत्यन्त हानिकारक हो जाते है अर्थात् विप के तुल्य होजाते है, एवं वासा अन्न फिर गर्म करने से अत्यन्त हानि करता है, इस के सिवाय-गर्म पदार्थ और वर्षा के जल के साथ शहद, खिचड़ी के साथ खीर, बेल के फल के साथ केला, कासे के पात्र में दशदिनतक रक्खा रहा हुआ घी, जल के साथ घी और तेल, तथा पुनः गर्म किया हुआ काढ़ा, ये सब ही पदार्थ हानि कारक है, इसलिये इन का त्याग करना चाहिये।
१२-सायंकाल का भोजन दो घड़ी दिन शेप रहने पर ही कर लेना चाहिये तथा शाम को हलका भोजन करना चाहिये किन्तु रात्रि में भोजन कभी नहीं करना चाहिये, क्योंकि जैन सिद्धान्त में तथा वैद्यक शास्त्रो में रात्रिभोजन का अत्यंत निषेध किया है, इस का कारण सिर्फ यही है कि-रात्रि को भोजन करने में भोजन के साथ छोटे २ जन्तुओं के पेट मे चले जाने के द्वारा अनेक हानियों की सम्भावना रहती है, देखो! रात्रि में भोजन के अन्दर यदि लाल तथा काली चीटिया खाने में आजावें तो बुद्धि भ्रष्ट होकर पागलपन होता है, जुयें से जलोदर, काटे तथा केश से स्वरभंग तथा मकडी से पित्ती के ददोड़े, दाह, वमन और दस्त आदि होते है, इसी प्रकार अनेक जन्तुओ से बदहज़मी आदि अनेक रोगो के होने की सम्भावना रहती है, इस लिये रात्रि का भोजन अन्धे के भोजन के समान होता है, (प्रश्न ) बहुत से महेश्वरी वैश्यों से सुना है कि हमारे शास्त्रों में एक सूर्य में दो बार भोजन का करना मना है इसलिये दूसरे समय का भोजन रात्रि में ही करना उचित है, (उत्तर ) मालूम होता है कि उन (वैश्यों) को उन के पोप और खार्थी गुरुओं ने अपने खार्थ के लिये ऐसा बहका दिया है और बेचारे भोले भाले महे. श्वरी वैश्यों ने अपने शास्त्रों को तो देखा नही, न देखने की उन में शक्ति है इस लिये पोप लोगों से सुन कर उन्हों ने रात्रि में भोजन करने का प्रारम्भ कर दिया, देखो! हम उन्हीं के शास्त्रों का प्रमाण रात्रिभोजन के निषेध में देते है-यदि अपने शास्त्रो पर विश्वास हो तो उन महेश्वरी वैश्यों को इस भव और पर भव में दुःखकारी रात्रिभोजन को त्याग देना चाहिये
१-शेप सयोग विरुद्ध पदार्थों का वर्णन दूसरे वैयक ग्रन्थों में देखना चाहिये।
२-यद्यपि घी और शहद तथा शहद और जल प्राय दवा आदि के काम में लिया जाता है और वह वहुत फायदेमन्द भी है परन्तु वरावर होने से हानि करता है, इस लिये इन दोनों को समान भाग में कभी नहीं लेना चाहिये।