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चैनसम्प्रदायशिक्षा |
में स्वाने चाहियें, पीछे वाक भाव आदि नरम पदार्थों को खाकर अन्त में दूम या छाछ आदि पतले पदार्थों को खाना चाहिये, मन्दामिवाले के लिये उड़द मावि पदार्थ स्वमान से ही मारी होते हैं तथा मूंग, मौठ, चना और मरहर, ये सब परिमाण से अधिक स्वाये जाने से मारी होते हैं, मिस्से की पूड़ी या रोटी भी मन्यामिवाले को बहुत हानि पहुँ पाती है मर्षात् पेट में मल और वायु को मनाती है तथा इस के सिवाय अतीसार और संग्रहणी के भी होने में कोई आश्चर्य नहीं होता है, बाहुआ मन बनाने के फेर फार से भारी हो जाता है, जैसे गेहूँ का दलिया रांगा जावे तो वह वैसा भारी नहीं होता है जैसी कि छापसी मारी मर्थात् गरिष्ठ होती है ।
१० - भोजन के समय में पहिले पानी के पीने से अभिभव होनाती है, बीच २ में मोड़ा २ एका वार व पीने से वह ( अ ) भी के समान फायदा करता है, भोजन के अन्त में आचमनमात्र ( सीन घूट ) बछ पीना चाहिये, इस के बाद अव प्यास को तम जल पीना चाहिये, ऐसा करने से भोजन मच्छीवरह पच जाता है, भोमन के भन्त में अधिक व पीने से अन्न हजम नहीं होता है, भोजन को खूब पेटमर कर (गजेवक ) कमी नहीं करना चाहिये, देखो ! वापर का फमन है कि--मम मोअन अच्छी तरह से पचता है तब तो उस का रस हो आता है सभा वह (रस) श्वरीर का पोपण करने में अमृत के तुम होता है और अब भोखन अच्छी तरह से नहीं पचता है तब रस न होकर बाम हो जाता है और वह नाम विष के तुल्य होता है इस लिये मनुष्यों को मि के मत के अनुसार मोमन करना चाहिये ।
११ - बहुत से पदार्थ अत्यन्त गुण कारी हैं परन्तु दूसरी चीम के साथ मिलने से बे हानिकारी हो जाते हैं तथा उन की हानि मनुष्यों को एकदम नहीं मासूम होती है किन्तु उस के बीज घरीर में छिपे हुए भगरम रहते हैं, जैसे प्रीष्म ऋतु में जंगल के अन्दर ममीन में देखा जाये तो कुछ भी नहीं दीखता है परन्तु अब के बरसने पर माना प्रकार के बीजों के मडर निकल जाते हैं, इसी प्रकार ऊपर एकदम दान नहीं मालूम होती है किंतु वे इकडे होकर ज़ोर दिखा देते हैं, मो २ पदार्थ धूप के साथ में मिलने से
हुए पदार्थों के खाने से किसी समय एकदम अपना विरोधी हो जाते हैं उन को
१उपयं कुआ से तीन भागों को राना चाहिये
१-हुत से कृपा है,
है कि 'मनुमपस्स सम्मे १ ॥ अर्थात् बुद्धि के द्वारा
जनस्य कुमाददस्य हो भो बाउ परिभारका मान अपना कर के अपने उपर के माय करने चाहिये जब में तो भ्रम से भरना चाहिये दो मामों को पानी से मरना चाहिये तथा एक नाम को बा जिसे उमय भीर निवास सुखपूर्वक भाषा पता रहे
में यह अनिया देवी
जूण में दो दिन की कसर एक ही उन को भरोनिया है ।