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मैनसम्पदामशिक्षा ॥ ३-भोमन का पनानेवाग (रसोइया) वैपक शाम के निममों का माननेवाम तमा उसी नियम से भोमन के सम पदार्थों का पनानेवाला होना चाहिये, सामान्यतया रसोई बनाने का कार्य गृहसों में लिमों के ही मापीन होता है इसलिये नियों को मोजन पनाने का ज्ञान पच्छे प्रकार से होना मावश्यक है।
-मोनन करने का सान मोबन बनाने के स्थान से भला और हनादार होना पाहिये, उस को अच्छे प्रकार से सफेवी से पुतमासे रहना चाहिये तथा उस में नाना प्रकार की सुगन्धित मनोहर और मनोसी वस्तुयें रक्सी रहनी चाहिये जिन देसने से नेशे को आनद तमा मन को हर्ष प्राप्त होवे।
५भोजन बनाने के सब पदार्थ (माटा वाल और मसासे भावि) मच्छी तरह जुने बीने (साफ किये हुए) हों वपा पातु के अनुच्छ हो और उन पदार्थों को ऐसा पाना चाहिये कि न सो भपकचे रहें और न विशेष चरने पावें, क्योंकि मघकया तमा या हुमा भोमन पहुत हानि करसा है, उस में भी मन्दामिवालों के लिये तो उक (अप कपा तथा बाहुआ) भोगन विष के समान है।
६-भोमन सदा नियत समय पर करना उचित है, क्योंकि ऐसा करने से मोमन ठीक -समय पर पचकर भूस को लगाता है, भोमन करने के बाद पाप घटे तक फिर भोजन नहीं करना चाहिये, एवं अपूरी मूस में तमा भनीर्म में भी भोजन नहीं करना चाहिये, इस के सिवाय हेमा और सविपात में तो दोष के पके विना (जरता यावादि योप पक मजावें तबतक) भोजन करना मानो मौत की निशानी है, मच्छी तरह से मूल मगने के माव मूस को मारना भी नहीं चाहिये, क्योंकि भूस लगने के बाव न साने से विना ईपन की भमि के समान शरीर की ममि गुम जाती है, इस सिमे प्रतिदिन निममित समय पर ही भोजन करना भतिउत्तम है।
७-भोवन करने के समय मम प्रसन्न रहे ऐसा पब करना चाहिये मर्भात् मन में सेव म्दानि और कोष मावि विकार किसी प्रकार नहीं होने चाहिये, पारों भोर से गोत मा एक गम सम्नी भोर एक बारिश्त उनी एक पौडी को सामने रस कर उसके उसर पयायोग्य सम्पूर्ण पदार्थों से सजिस पास को रस र मुनि को देने की माषमा माये, पथात् मानंदपूर्वक मोमन परे, मोमन में प्रथम सेंधा नमक लगा पर भवरस के पक्ष पीस टुको साना बहुत भच्छा है, भोजन मी सीधे भासन से पैठ कर करना चाहिये
-ऊपर पोरे पो म सागपाल समाचाहिने मी भान रानि होती -सरी ममम मम्मे दुरे भनि यो पप सरी Bी पर मिम्तीवर या ममि उस मार्ग जम्मर पुस मावीइसी प्रमर पे भातरम निनम से पचर दी ममि पुध पाती है। 1-पर भारि उपम र पए पर पंचम्म पारिसे भार बी एसी बात सुननी पा
करी पाहिये।