________________
१०६
जैनसम्पदामशिक्षा ||
१० - शरीर को पीठी उबटन वा साबुन लगा कर रगड़ २ के खून धोना चाहिये पीछे खान करना चाहिये ।
११ - खान करने के पश्चात् मोठे निर्मल कपड़े से श्वरीर को खूब पौछना चाहिये कि जिस से सम्पूर्ण शरीर के किसी भाग में तरी न रहे।
१२ - गर्मिणी स्त्री को सेक लगाकर खान नहीं करना चाहिये ।
१३ - नेत्ररोग, मुखरोग, कर्णरोग, अतीसार, पीनस तथा ज्वर भादि रोगवालों को स्वान नहीं करना चाहिये ।
१४ - मान करने से प्रथम भगवा प्रात काल में नेत्रों में ठंडे पानी के छींटे देकर मोना बहुत कामदायक है ।
१५ - मान करने के बाद घंटे दो घण्टे द्रव्यभाव से ईश्वर की भक्ति को ध्यान लगाकर करना चाहिये, यदि भधिक न बन सके यो एक सामामिक को तो शास्त्रोक नियमानुसार गृहस्थों को भवश्य करना ही चाहिये, क्योंकि जो पुरुष इतना भी नहीं करता है वह गृहस्थाश्रम की पश्चिमें नहीं गिना जा सकता है अर्थात् वह गृहस्य नहीं है किन्तु उसे इस (गृहस्य ) ग्रामम से भी आए और पतित समझना चाहिये ||
पैर घोना ॥
पैरों के बोने से यकावट माती रहती है, पैरों का मैल निकल जाने से स्वच्छता मा खाती है, नेत्रों को तरावट तथा मन को आनंद माप्त होता है, इस कारण जब कहीं से चलकर मामा हो वा चब मावश्यकता हो तब पैरों को धोकर पोंछ डालना चाहिये, यदि सोते समय पैर पोकर शमन करे तो नींव मध्छे प्रकार से भागाती है ।
भोजन ॥
प्यारे मित्रो ! यह सब ही मानते हैं कि मन के ही भोजन से प्राणी नवते मौर जीवित रहते हैं इस के बिना न तो प्राणी बीमित ही रह सकते हैं और न कुछ कर ही सकते हैं, इसी किये चतुर पुरुषों ने कहा है कि माम अलमय है यद्यपि मोमन का रिगाम मिल २ देशों के भिन्न २ पुरुषों का मिन्न २ है इसलिये यहां पर उस के छिलने की कोई भागश्यकता मवीस नहीं होती है तथापि यहां पर संक्षेप से शास्त्रीय नियम के अनुसार सामान्यतमा सर्व हितकारी यो भोजन है उस का वर्णन किया जाता है:
-
१- बहुत से श्रीकीन योग से बने हुए एसर साबुन को पा कर लाग करते है परन्तु धर्म से होने की तरफ क्या नहीं करते है, मरि साबुन बाकर नहाना से तो उत्तम देसी साबुन लाकर महाना चाहिये क्योंकि देसी साबुन में चर्चा नहीं होती है १- म को अंडा कहते है, રોજ ૨૫
क्योंकि इससे अंग पो जाता है मा प्रायः य का भ