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जैनसम्प्रदायशिक्षा ॥
सके तो पैरो की पीडियों और हाथ पैरों के तलवों में तो अवश्य मसवाना चाहिये तथा चिर और कान में डालना तथा मसम्मना चाहिये, यदि प्रतिदिन वेळ का मर्दन न बन सके तो अठवाड़े में तो एकवार भवश्य मर्दन करवाना चाहिये और यदि यह भी न बन सके तो शीतकाल में सो अवश्य इस का मर्दन कर जाना ही चाहिये ।
तेल का मर्दन कराने के बाद चने के आटे से अथवा मांगले के चूर्ण से चिकनाहट को दूर कर देना चाहिये ||
सुगन्धित तैलों के गुण ॥
चमेली का तेलस की तासीर ठंडी और सर है ।
हिने का तेल - यह गर्म होता है, इस सिये स्थिन की बादीकी प्रकृति होने इस को छाया करें, चौमासेमें भी इस का उगाना कामदायक है ।
अरगजे का तेल - यह गर्म होता है तथा उमगन्म होता है अर्थात् इस की खुशबू सीन विनतक फेसों में बनी रहती है।
गुलाम का तेल –मह ठडा होता है तथा बिसनी सुगन्धि इस में होती है उतनी दूसरे में नहीं होती है, इस की खुशबू ठंडी औौर तर होती है ।
केव का तेल --- यह बहुत उत्तम इवयभिम और ठंडा होता है ।
मोगरे का तेल - यह ठंडा और तर है ।
नींबू का तेल - यह ठंढा होता है तथा पितकी मकृविवालों के लिये फायदे मन्येहै ॥
ज्ञान ॥
वैकादि क मदन के पीछे सान करना चाहिये, मान करने से गर्मी का रोग, इम का ताप, रुधिर का कोप और शरीर की दुर्गन्ध दूर होकर कान्ति तेय मठ औौर प्रकाश गडता है, क्षुधा अच्छे प्रकार से लगती है, बुद्धि चैतन्य हो जाती है, आयु की वृद्धि होती है, सम्पूर्ण शरीर को आराम माम पडता है, निर्भता तथा मार्ग का स्लेव दूर होता है और
१- इमसब तो उत्तम बगान की रीति का मे ही जामतो मतिसमय इन को बनाया करता है, पानिकों में को बसा कर पर परिभ्रम से बनाया जाता है, दो रुपये शेर के भाग भियतन साधारण होता है तीन चार पोष सात और दस रूपये सर के भाग का भी है, परन्तु उसकी टक पहिचान का करना यदि सरभर चमक वन में एकता भर केगड़े का घर तथा उससे साथ मान मर्द उठेगा भर ममी का भवर दिने दिने अतर मे भव का भार गरे बूर हो जात
का काम नहीं भालू बहुत कम है भरात दिया मानो वह बहुत स क्ष्मी प्रस्सर सेरमर चमकी तक में एक अमजदल में भरगजे का भवर गुम्धव के वरू त में मापरेका तर दिसतो में असम्प