________________
१०२
चैनसम्प्रदामशिक्षा |
मवश्य स्वयं व्यायाम करना चाहिये तथा अपने सन्तानों को भी अम्बास कराना चाहिये जिस से इस भारत में पूर्ववत् बीरशक्ति पुन म्यायाम करने में सदा देश काल और शरीर का पल भी देखना इस से विपरीत दशामें रोग हो जाते हैं।
प्रतिदिन व्यायाम का षा जावे । उचित है क्योंकि
कसरत करने के पीछे तुरंत पानी नहीं पीना चाहिये, किन्तु एक दो घण्टे के पीछ कुछ गवामक भोजन का करना आवश्यक है जैसे- मिश्रीसयुक्त गायका यूघ ना गावाम की कदली यादि, अथवा अन्य किसी प्रकार के पुष्टिकारक लज्यू भावि जो कि देश का और प्रकृति के अनुकूल हो खाने चाहिये ॥
व्यायाम का निषेष -- मिश्रित वातपित्त रोगी, बालक, वृद्ध और अबीर्णी मनु ष्यों को कसरत नहीं करनी चाहिये, श्रीतकाल और मसन्यपातु में मच्छे प्रकार से तथा अन्य तुओं में बोड़ा व्यायाम करना मोम्म है, अति व्यायाम भी नहीं करना चाहिये क्योंकि अत्यन्त म्यायाम के करने से तृषा, क्षम, तमक, श्वास, रक्तपित, श्रम, म्हानि, कास, ज्वर और छर्दि आदि रोग हो जाते हैं ।
तैलमर्दन ॥
तेल का मर्दन करना भी एक मकार की कसरत है तथा लाभदायक भी है इसमे प्रतिदिन प्रात काल में खान करने से पहिले तेल की मामिव करानी चाहिये, यदि कसरत करने पाका पुरुष कसरत करने के एक घंटे पीछे शरीर में क्षेत्र का मर्दन कर वाया करे तो इस के गुणों का पार नहीं है, तेख के मर्दन के समय में इस बात का भी स्मरण रहना चाहिये कि तेल की मासि सब से अधिक पैरों में करानी चाहिये, क्योंकि पैरों में तेल की अच्छी तरह से माकित कराने से शरीर में अधिक बल भाता है, तेल के मर्दन के गुण इस प्रकार हैं
-
१- तेल की माघि नीरोगता और दीर्घायु की करने वाली सभा सास को बढ़ाने पोती है ।
२ - इस से चमड़ी सुहावनी हो जाती है तथा भ्रमड़ी का रूखापन और खसरा जाय है तथा अन्य भी चमड़ी के नाना प्रकार के रोग जाये रहते हैं और चमड़ी में नया रोग पैदा नहीं होने पाता है ।
रसा
३- शरीर के सांधे नरम और मजबूत हो जाते है ।
४- रस और सून क पैद हुए मार्ग तुम जाते हैं ।
५ - जमा हुआ सून गतिमान् छोकर घरीर में फिरने भगता है ।
६-सून में मिली हुई बायु के दूर दा जान से बहुत से भानेवाला रोग रुक जाते हैं। १ दियो निरम्बरको मत उपाय आप ही मानने
G