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वैनसम्प्रदायशिक्षा ||
न उस के पुर्जों को साफ करावे तो थोड़े ही दिनों में वह बहुमूल्य घड़ी निकम्मी हो जावेगी, उस के सब पूर्व विगढ़ खायेंगे और जिस प्रयोजन के लिये वह बनाई गई है वह कदापि सिद्ध न होगा, बस ठीक यही दक्षा मनुष्य के शरीर की भी है, देखो ! मवि नु, श्वरीर को स्वच्छ और सुभरा बनाये रहे, उस को उमंग और साइस में नियुक्त रक्खे सभा स्वास्थ्य रक्षा पर ध्यान देते रहें तो सम्पूर्ण शरीर का वल सभागत् बना रहेगा और शरीरस्व मत्येक वस्तु बिस कार्य के लिये बनी हुई है उस से वह कार्य ठीक रीति से होता रहेगा परन्तु यदि ऊपर किसी बातों का सेवन न किया यावे तो शरीरस्य सम वस्तु निकम्मी हो आयेंगी और स्वाभाविक नियमानुकूल रचना के प्रतिकूल फल धीमने मोगा अर्थात् जिन कार्यों के लिये यह मनुष्य का शरीर बना है वे कार्य उस से वापि सिद्ध नहीं होंगे ।
घड़ी के पुर्मो में तेल के पहुँचने के समान शरीर के पुर्जों में (अवयवों में ) रक (खून) पहुँचने की आवश्यकता है, अर्थात् मनुष्य का जीवन रक के चलने फिरने पर निर्भर है, मिस प्रकार कूर्चिका (कुत्री) आदि के द्वारा बड़ी के पुर्जों में से पहुँचाया जाता है उसी प्रकार व्यायाम के द्वारा शरीर के सब अवयवों में रक्त पहुँचामा बाता है अर्थात् व्यायाम ही एक ऐसी वस्तु है कि जो रफ की चाल को सेन मना कर सन अभ यवों में मभावत् रक्त को पहुँचा देती है ।
जिस प्रकार पानी किसी ऐसे वृक्ष को भी जो श्रीघ्र सूख जानेवाला है फिर हरा भरा कर देता है उसी प्रकार शारीरिक व्यायाम भी शरीर को हरा भरा रखता है अर्थात् शरीर के किसी भाग को निकम्मा नहीं होने देता है, इसलिये सिद्ध है कि शारीरिक बस और उस की हड़ता के रहने के सिमे व्यायाम की अत्यन्त आवश्यकता है क्योंकि रुपिर की भास को ठीक रखनेवाला केवळ म्यायाम है और मनुष्य के शरीर में रुधिर की पा उस नहर के पानी के समान है जो कि किसी बाग में हर पटरी में होकर निकलता हुआ सम्पूर्ण वृक्षों की जड़ों में पहुँच कर तमाम बाग को सींध कर मफुल्लित करता है, मिम पाठक गण । देखो ! उस बाग में जिसने हरे भरे वृक्ष और रंग बिरंगे पुष्प अपनी छवि को दिसावे है और नाना भाँति के फल अपनी २ सुन्दरता से मन को मोहित करते हैं मह सब उसी पानी की महिमा है, यदि उस की नालियां न खोली जाती तो सम्पूर्ण नाम के वृक्ष और पस बूटे मुरझा जाते सभा फूस फल कुम्हठाकर शुरू हो जात कि जिस से उस आनंदबाग में उदासी परसने लगती और मनुष्यों के नेत्रों को जो उन के विठोकन फरने अभाव देखने से सराबट व सुख मिलता है उस क सम में भी दर्शन नहीं होते, ठीक यही दक्षा शरीरम्प भाग की रुधिररूपी पानी के साथ में समझनी चाहिये, सुजनी ! सोचो तो सही किन्दसी स्पामाम के बल से प्राचीन भारतवासी पुरुष नीरोम,