________________
चतुर्थ अध्याय ॥
२५७ वरा और मँगोरा-ये दोनो-बलकारक, बृहण, वीर्यवर्धक, वातरोगहर्ता, रुचिकारी, अर्दित वायु (लकवा) के नाशक, मलभेदक, कफकारी तथा प्रदीप्ताग्निवालो के लिये हितकारक है, यदि गाढे दही में भुना हुआ जीरा, हींग, मिर्च और नमक को मिलाकर बरे और मॅगोरो को भिगो दिया जाये तो वे दही बडे और दही की पकोडी कहलाती है, ये दोनो-वीर्यकर्ता, बलकारी, रोचक, भारी, विवन्य को दूर कर्ता, दाहकारी, कफकर्ता और वातनाशक होते है ॥
उड़द की बड़ी-इन में बरे के समान गुण है तथा अत्यन्त रोचक है ॥
पेठे की बड़ी-इन में भी पूर्वोक्त वडियो के समान गुण है परन्तु इन में इतनी विशेषता है कि ये रक्तपित्तनाशक तथा हलकी है ॥ ___ मूंग की बड़ी-~-पथ्य, रुचिकारी, हलकी और मूंग की दाल के तुल्य गुणवाली है ॥
कढ़ी-पाचक, रुचिकारी, हलकी, अग्निदीपक, कफ और वादी के विबंध को तोडनेवाली तथा कुछ २ पित्तकोपक है ।। __ मीठी मठरी-बृहण, वृष्य, बलकारी, मधुर, भारी, पित्तवातनाशक तथा रुचिकारी है, यह प्रदीप्तामिवालो के लिये हितकारक है, इसी प्रकार मैदा खाड़ और घी से बने हुए पदार्थों (बालूसाई, मैदा के लड्डू और मगद तथा सकर पारे आदि) के गुण मीठी मठरी के समान ही जानने चाहिये ।।
बूंदी के लड्डु-हलके, ग्राही, त्रिदोषनाशक, स्वादु, शीतल, रुचिदायक, नेत्रों के लिये हितकारक, ज्वरहर्ता, बलकारी तथा धातुओं की तृप्तिकारक है, ये मूग की बूदी वाले लड्डुओं के गुण जानने चाहिये ॥
मोतीचूर के लड्ड-बलकर्ता, हलके, शीतल, किञ्चित् वातकर्ता, विष्टम्भी, ज्वरनाशक, रक्तपित्तनाशक तथा कफहत है ।
जलेवी-पुष्टिकती, कान्तिकर्ता, बलदायक, रस आदि वातुओं को बढ़ानेवाली, वृष्य, रुचिकारी और तत्काल वातुओं की तृप्तिकारक है ॥
शिखरन (रसाला)-शुक्रकी, बलकारक, रुचिकारी, वातपित्त को जीतनेवाली, दीपनी, बृह्णी, खिग्ध, मधुर, शीतल और दस्तावर है, यह रक्तपित्त, प्यास, दाह और सरेकमा को नष्ट करती है ।
शर्वत-वीर्य प्रकटकर्ता, शीतल, दस्तावर, बलकारी, रुचिकी, हलका, स्वादिष्ठ, वातपित्तनाशक तथा मूर्छा, वमन, तृषा, दाह और ज्वर का नाशक है ।।