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बैनसम्प्रदायशिक्षा ||
६- छाछ, नींबू और कच्चे आम आदि खट्टे पदार्थ भी अन्य धातुओं की अपेक्षा इस ऋतु में अधिक पथ्य हैं ।
इन वस्तुओं का उपयोग भी प्रकृति के अनुसार तथा परिमाण भूजन करने से काम होता है अन्यमा हानि होती है ।
८--नदी तालाब और कुए के पानी में जल पीने योग्य नहीं रहता है, इस लिये मिठता हो उस का बल पीना चाहिये ।
बरसात का मैला पानी मिल जाने से इनका जिस कुए में वा कुण्ड में परसासी पानी न
९ - बरसात के दिनों में पापड़, काचरी और मुखिये, बड़े, भीमड़े, बेदई, कचौड़ी भावि स्नेहवाले सिमेइन का सेवन करना चाहिये ।
१० - इस ऋतु में नमक अधिक खाना चाहिये ||
अचार आदि क्षारबाले पदार्थ समा पदार्थ अधिक फायदेमन्द हैं, इस
इस ऋतु में अपथ्य — तकघर में बैठना, नदी या तालाब का गवा मल पीना, दिन में सोना, भूप का सेवन और शरीर पर मिट्टी उगाकर कसरत करना, इन सब बातों सेना ाहिये ।
इस ऋतु में रूक्ष पदार्थ नहीं खाने चाहियें, ठडी हवा नहीं छेनी चाहिये, कीचड़ और भीगी चाहिये, भीगे हुए कपड़े नहीं पहरने चाहियें, बैठना चाहिये, घर के सामने कीचड़ और मैकापन नहीं होने देना चाहिये, मरसात का a नहीं पीना चाहिये और न उस में नहाना चाहिये, यदि नहाने की इच्छा हो तो शरीर में तैस की मालिस कर नहाना चाहिये, इस प्रकार से आरोग्यता की इच्छा रखने बालों को इन चार मासतक ( माद् और वर्षा ऋतु में ) पर्याय करना उचित है ।
क्योंकि रूक्ष पदार्थ हुई पृथिवी पर हवा और जल की
राय को बढ़ाते हैं, नंगे पैर नहीं फिरना बूंदों के सामने नहीं
शरद् ऋतु का पथ्यापथ्य ॥
सब ऋतुओं में घरव् ऋतु रोगों के उपद्रव की जड़ है, देखो! वैद्यकशास्तकारों का कवन है कि-“रोगाणां शारदी माता पिता तु कुसुमाकर ” अर्थात् धरव् भातु रोगों को पैदा करनेवाली माता है और वसन्त ऋतु रोगों को पैदा कर पाखनेवाला पिता है, मह सब ही जानते हैं कि सब रोगों में उबर राजा है और ज्बर ही इस ऋतु का मुख्य जप द्रव है, इसलिये इस धातु में बहुत ही सभक कर चलना चाहिये, वर्पा हुआ पिच इस धातु के ताप की गर्मी से शरीर में कुपित होकर बुखार को करता है में सचिव ऋतु बरसात के कारण ममीन मीगी हुई होती है इसलिये उस से भी भूप के द्वारा जल की
१- यह स्पसूत्र की मैरा में है ।