________________
२९२
बैनसम्प्रदायशिक्षा ॥ कारी पदार्थ है, इसलिये इन में से किसी एक चीम की फंकी के ना पाहिये, भवना रास को मिगो कर प्रावकार उस का काम कर ( उबार कर ) छान कर समा ठपा र मिमी सरकर पीना चाहिये, इस दमा की मात्रा एक रुपये भर है, इस से भर नहीं भाता है और मवि पर हो वो भी पग जाता है, क्योंकि इस दवा से पित्त की शान्ति हो जाती है।
-पित्त की प्रकृतिबा के लिये दूसरा इलाब यह भी है कि वह दूप मौर मिमी के साम पाबलों को सावे, क्योंकि इस के सानेसे भी पित्त धान्त हो जाता है।
५-पित्त की महतिबा को पित्तशामक जुगन मी ले सेना चाहिये, उस से भी पित्त निकम कर शान्त हो जायेगा, पर जुगाम यह है कि-अमृतसर की अमवा छोटी
रें भागा निसोतकी छाल, इन तीनों पीयों में से किसी एक चीम की फंकी मा मिठा कर लेनी चाहिये सबा वाट मात मा कोई पतम पदार्थ पप्य में सेना चाहिये, से सम सापारण वस छानेवाली बीमें हैं।
६स प्रात में मिमी, बूरा, न्द, कमोद वा साठी वापस, दूष, स, सेंपा नमक (मोहा), गेइ, माँ और मूंग पय्म , इस रिये इन को साना चाहिये।
७-बिस पर दिन में सूर्य की किरणें परें और रात को पन्द्रमा की पिर परें, ऐसा नदी सबा साताव का पानी पीना पय्य है।
८-पन्दन, चन्द्रमा की किरणें, घरों की मालमें मौर सफेद बम, ये भी घरद् मातु में पप्प है।
९-पेपरवास करता है कि-भीम भतु में दिन को सोना, हेमन्त ऋतु में गर्म भीर परिचारक सराका साना और शरद पसत में दम में मिमी मित्म कर पीना पाहिये, इस प्रकार पार करने से प्राणी नीरोग और धीर्माण होता है।
१०-कपिल के लिये जो २ पथ्य कहा है यह २ इस तु में भी पथ्य है ।।
इस पातु में अपभ्य-मोस, पूर्व की हवा, क्षार, पेट भर भोमन, दही, सिपही, तेर सराई, सोठ मोर मिर मावि तीसे पदार्थ, हिंग, सारे पदार्थ, मधिक परपीबारे पदार्थ, सूर्य तथा भमि ताप, गरमागरम रसोई, दिन में सोना और मारी सुरा इन सषप्रयोग करना पारिये ॥
1. में पर भर ग्राम से पास पानि ऐती है यम्मान में प्रति परि मामी सेर समपिर भार नपार्म पन र नियमहराया, पुस महिनों में पोड़ा भार हम भाचा सरपरी ममरसेबपता है।
-रवीरोमका A TO बातों प्रताप पाभी पर स्वाभिमप्र रोपन ना ( ना) बाम 1