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चतुर्थ अध्याय ॥
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रहती है इसलिये उसके द्वारा उभय लोकसम्बधी कार्यों का विचार कर तुम अपने समय को लौकिक तथा पारलौकिक कार्यों में व्यय कर सफल कर सकते हो ।
देखो ! प्रात काल चिड़िया भी कैसी चुहचुहाती, कोयलें भी कू कू करती मैना तोता आदि सब पक्षी भी मानु उस परमेष्ठी परमेश्वर के स्मरण में चित्त लगाते और मनुष्यों को जगाते है, फिर कैसे शोक की बात है कि हम मनुष्य लोग सब से उत्तम होकर भी पक्षी पखेरू आदि से भी निषिद्ध कार्य करें और उन के जगाने पर भी चैतन्य न हों ॥
प्रातःकाल का जलपान ॥
ऊपर कहे हुए लाभों के अतिरिक्त प्रात काल के उठने से एक सकता है कि- प्रातः काल उठकर सूर्य के उदय से प्रथम थोडा सा ववासीर और ग्रहणी आदि रोग नष्ट हो जाते है ।
यह भी बड़ा लाभ हो शीतल जल पीने से
वैद्यक शास्त्रों में इस (प्रातः काल के ) समय में नाके से जल पीने के लिये आज्ञा दी है क्योंकि नाक से जल पीने से बुद्धि तथा दृष्टि की वृद्धि होती है तथा पीनस आदि रोग जाते रहते है ॥
शौच अर्थात् मलमूत्र का त्याग ॥
प्रातःकाल जागकर आधे मील की दूरी पर मैदान में मल का त्याग करने के लिये जाना चाहिये, देखो ! किसी अनुभवी ने कहा है कि - " ओढे सोवै ताजा खाँदै, पाव कोस मैदान में जावे । ति घर वैद्य कभी नहिं आवै" इस लिये मैदान में जाकर निर्जीव साफ ज़मीनपर मस्तक को ढांक कर मल का त्याग करना चाहिये, दूसरे के किये हुए मलमूत्र पर मल मूत्र का त्याग नही करना चाहिये, क्योंकि ऐसा करने से दाद खाज और खुजाख आदि रोगों के हो जाने का सम्भव है, मलमूत्र का त्याग करते समय बोलना नही
१- इस की यह विधि है कि - ऊपर लिखे अनुसार जागृत होकर तथा परमेष्टी का ध्यान कर आठ अञ्जलि, अर्थात् आघ सेर पानी नाक से नित्य पीना चाहिये, यदि नाक से न पिया जासके तो मुँह से ही पीना चाहिये, फिर आध घण्टे तक वाये कर वट से लेट जाना चाहिये परन्तु निद्रा नहीं लेनी चाहिये, फिर मल मूत्र के त्याग के लिये जाना चाहिये, इस ( जलपान ) का गुण वैद्यक शास्त्रों में बहुत ही अच्छा लिखा है अर्थात् इस के सेवन से आयु बटता है तथा हरम, शोथ, दस्त, जीर्ण ज्वर, पेट का रोग, कोढ, मेद, मूत्र का रोग, रक्तविकार, पित्तविकार तथा कान आस गले और शिर का रोग मिटता है, पानी यद्यपि सामान्य पदार्थ है अर्थात् सव ही की प्रकृति के लिये अनुकूल है परन्तु जो लोग समय विताकर अर्थात् देरी कर उठते हैं उन लोगों के लिये तथा रात्रि में सानपान के त्यागी पुरुषों के लिये एव कफ और वायु के रोगों में सन्निपात में तथा ज्वर में प्रात काल मे जलपान नहीं करना चाहिये, रात्रि मे जो खान पान के त्यागी पुरुष हैं उन को यह भी स्मरण रसना चाहिये कि जो लाभ रात्रि में खानपान के त्याग में है उस लाभका हजार वां भाग भी प्रात काल के जलपान में नहीं है, इसलिये जो रात के खान पान के त्यागी नहीं हैं उन को उपापान ( प्रात काल में जलपीना) कर्त्तव्य है ॥
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