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जैनसम्प्रदायभिक्षा ।। मादि सम बातों का विचार कर उपयोग में आने से हानि नहीं करते हैं, क्मोकि देसो ! एकही पदार्थ में प्ररुति और त के भेद से पय्य मौर कुपथ्य दोनों गुण रहते हैं, इस के सिवाय मह देसा पाता है कि एक ही पदार्थ रसायनिक सयोग के द्वारा अर्थात् दूसरी धीनों के मिलने से ( जिस को तन्त्र कहते हैं उस से ) मिन गुणवाला हो बासा है भत्ि उफ समोग से पदार्थों का धम पक्रू कर पय्य और कुपप्प के सिगास एक तीसरा ही गुण मफट हो जाता है इसलिये बिन लोगों को पदार्थों के हानिकारक होने वा न होने का ठीक धान नहीं है उन के लिये सीमा मौर पच्छा मार्ग यही है कि वैपक विषा की माशा के मनुसार चल कर पवार्थों को उपयोग में छावे, देसो ! शरद पच्छा पदार्थ है भर्यात् त्रिदोष को हरता है परन्तु वही गर्म पानी के साथ या किसी भस्युप्म वस्तु के साथ मा गर्म सासीरवासी वस्तु के साम अषया सनिपात जर में देने से हानि करता है, एष समान परिमाण में धृत के साथ मिलने से निप फे समान मसर करता है, दूध पथ्य पदार्थ है तो भी मूली, मग, क्षार, नमक वा एरण के सिवाय बाकी तेलों के साम वाया याने से अवश्य नुक्सान करता है।
वनों के योग से भी वस्तुओं के गुणों में मन्तर हो जाता है, मैसे-सामे और पीतल के वर्जन में सटाई तथा सीर का गुण बदस नावा है, कांसे के बर्तन में घी का गुण बदस मासा है मर्यास् थोड़ी देर तक ही श्रसे के वर्जन में राने से भी नुकसान करता है, यदि सात दिन तक भी कांसे के यर्डन में पा रहे और पह लाया चा तो वा प्राणी को प्राणान्ततफ कर पहुंचाता है।
दूम के साप सहे फल, गुरु, वही और सिनही मादि के साने से भी नुक्सान होता है।
प्रिय पाठक गण | थोड़ा सा विचार करो ! सर्वश भगरान् ने संयोगी विपों का वर्णन पक धाम में किया है उस (शाम) के पाने और सुनने के विना मनुष्यों को इन सब माती का शान कैसे हो सकता है। यही पणन सूत्र प्रकीणों में भी किया गया है समा मा कुपप्य पदार्थों को ही भभक्ष्य ठहराया है।
उपर करे हुए ऊपप्पा का फस टीम नहीं मिसता किन्तु वम अपने २ कारमा को पाकर पहुत स दोप इससे हो जाते हैं उन बह पप्प दूसरे ही रूप में दिखाई देता है ममात् पूर्णमल मुपध्य से उत्तम हुए फर के कारण को उस समय लोग नहीं समझ सस्ते हैं, इस सिप फुपथ्य सभा संमोग विरुद्ध पदार्थों से सदा परना पाहिये, क्योकि इनके सपन से अमर प्रकार के रोग उत्पम होते है।