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चैनसम्प्रवामशिक्षा ॥ पदार्थों का सेवन किया जाये तो सलिपात तथा मरमवक हानि पहुँचती है, रोग समय में निपित पदार्थों का सेवन फर के मी पर जाना तो अमि विप भार सत्र से पर जाने के तुल्य देवाधीन ही समझना चाहिये ।
वैपक श्वास में निषेभ होने पर भी नये वर में जो पश्चिमीय विद्वान् (गररर ठोग) खूप पिगते हैं इस पात का निधय भपापपि (मानवक) ठीक तौर से नहीं हुमा हे, हमारी समझ में नह (दूध का पिठाना) मोपप विशेप कर (बिस का वे लोग प्रयोग करते है) अनुपान समझना चाहिये, परन्तु यह एक विचारणीय विपप है।
इसी प्रकार से कफ के रोगी को तभा प्रसता सी को मिश्री मादि पदार्थ हानि पहुँचाते हैं ।
पथ्यापथ्य पदार्थ ॥ बामरी, उड़द, वा, कुम्भी, गुरु, सोर, मक्खन, दही, छाछ, भैंस का दूध, पी, माल, तोरई, कांदा, फोग, ककोरा, गुवार फली, वूमी, सवा, कोला, मेभी, मोगरी, मूसा, गायर, काचर, काजी, गोभी, पिमा, सोई, फेसा, अनन्नास, माम, जामुन, करोंदे, भमीर, नारगी, नी, अमहद, सकरकन्द, पील, गंदा और तरबूज आदि बहुत से पदायों का लोग प्राय उपयोग करते हैं परन्तु महति भौर पातु मावि का विचार कर इन का सेवन करना चाहिये, क्योंकि ये पदार्थ फिसी मरुति मा सिमे भनुम तमा किसी प्रातिबाले के लिये प्रतिमन एष किसी मन में मनुज और किसी मन में पतिकूल होते हैं, इसलिये प्रति भावि का विचार किये बिना इन का उपयोग करने से हानि होती है, वैसे वही भर भातु में शत्रु काम करता है, पर्मा भौर हेमन्त भाव में हित फर है, गर्मी में भर्यात् मेठ पैशास्त्र के महीने में मिभी के साथ लाने से ही फायदा करता है, पर ज्वर वासे को ऊपभ्य है और मतीसार वाले को पप्प है, इस प्रकार प्रत्येक मस्त के स्वभाव को तमा सतु के अनुसार पथ्यापथ्य को समझ पर भोर समसदार पूर्ण पेप की या इसी प्रन्थ की सम्मति मेकर मत्येक वस्तु का सेवन करने से कभी हानि नहीं रो सकती है। पम्मापप्प के विषय में इस चौपाई को सदा म्मान में रसना पाहिये--
से गुरुदेशाले तेल । मेठे फल भपाते बल॥ सापन दूप न मावों मही । फार फरेला न कातिक दही ॥ मगहन जीरो से पना । माहे मिमी फागुन पना ॥ जो यह बारह देस बपाय । वा पर पैप सहुँ न चापै ॥ १ ॥ पवम सामने नहीं nि