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बैनसम्प्रदामशिक्षा ॥ बाली इस दवा में दुर्गन्धि मी होती है परन्तु बरिया में नहीं होती है, इस दवा की। पनी हुई टिकियां भी मिलती हैं जो कि गर्म पानी या दूध के साथ साब में खाई ना । सकती है।
इस (उपर फही हुई) दवा के ही समान मास्टा नामक भी एक दवा हे यो कि मत्यन्त पुष्टिकारक तमा गुणकारी है तथा पर इन्हीं (साधारण)ों कों से भौर नोंनों के समक्ष ओट नामक अनाज से मनाई बासी है। ___ कॉरलीवर मॉइड वीमार आदमी के लिये स्वराफ का काम देता है तथा हमम मी जस्वी दी हो जाता है।
उक दोनों पुष्टिकारफ दनामों में से कॉग्लीपर मॉइस यो क्या है पह मार्य मेगों के लेने योग्य नहीं है, क्योंकि उस दा का ना मानो धर्म को विगजलि देना है।
घीमार के पीने योग्य जल-ययपि साफ भौर निर्मक पानी का पीना तो नीरोग पुरुष को भी सदा उचित है परन्तु बीमार को तो अवश्य ही सम्छ बछ पीना पाहिये, क्योंकि रोग के समय में मलीन मठ के पीने से मन्य भी दूसरे प्रकार के रोग उत्तम हो पाते हैं, इस म्येि चम्को सय करने की युक्तियों से खूब सच्छ कर भवरा ममेजों की रीतिसे भर्यात् रिस्टीस के द्वारा स्वच्छ करके भगवा पहिले रिसे अनुसार पानी में तीन उवाम देकर ठराकर के रोगी को पिमना पोहिये, सटर ग्रेग मी हेमे में समा सस्स नुसार की प्यास में ऐसे ही ( सम्म किये हुए ही) मर में मोड़ा २ बर्फ मिला कर पिलगते हैं।
नींबू का पानक बहुत से युसारों में नी का पानक मी दिया जाता है, इसके पनाने की यह रीति है कि नीन् की फा कर तमा मिभी पीसकर एक सच या पत्थर के वर्णन में दोनों को रस कर उसपर उपसता हुमा पानी गाना पाहिये तमा पर पहरा हो धाये तब उसे उपयोग में लाना चाहिये ।।
गोंद का पानी---गोद न पानी २॥ सोले सपा मिमी १। सोडा, इन दोनों को एक पात्र में रखकर उस पर उमलता हुआ पानी रासार ठरा हो जाने पर पीने से सेम मर्याद कफ दफनी मोर फण्ठ मेक का रोग मिट जाता है।
जी का पानी-छरे हुए (टे हुए) नौ एक पो मने मर (करीब १ण्टाक), पूरा दो तीन पिममी मर (करीर १॥ घटाक) मा पोड़ी सी नीयू की छाल, इन सम
1ो या (प्रसारर भारत) बोरगासो मम्मका
५-देयो। पावासून में मिया कि पम्पीयान पर पारि मात्रा ने ऐसा सप्ठ र राग तिपय पिन्मया बालि पिस प्रेदेव र भीर पीर राजा गपापम में ऐ गाना इस से विरोधीकि समय में भी पापपरमे मना रत्तमोत्तम चियाबी वा सम्म पर ही पासोम पसना पान