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नसम्पदामशिक्षा ॥ सरफ फिरता है तम उपर की तरफ के उप्ण कटिभन्ध के प्रदेशों पर उतरीय सूर्य की किरणों सीपी पाती है इससे उन प्रदेशों में सख्त ताप परता है, इसी प्रकार मग सूर्य दक्षिण की तरफ फिरता है तब पक्षिण की तरफ के तप्ण कटिबन्न के प्रदेशों पर दक्षिण में लिव सूर्य की किरणें सीधी पाती हैं इस से उन प्रदेशों में मी पूर्ण रिले अनुसार सस्त ताप पड़ता है, यह हिन्दुस्तान पेच पिपुवास अर्थात् मम्परेखा के उत्तर की तरफ में सित है अर्मात् च दक्षिण हिन्दुस्थान उप्म कटिबन्ध में है क्षेप सन उचर हिन्दु शान समशीतोष्ण कटिबन्ध में है, उक्क रीति के अनुसार अव सूर्य 8 मास तक उपरा यम होता है तब उत्तर की तरफ ताप भधिक पाता है और पक्षिम की तरफ कम पड़ता है वमा यब सूर्य उ. मासतक दक्षिणायन होता है तम दक्षिण की तरफ गर्मी अधिक परती है गौर उपर की तरफ कम पड़ती है, उत्तरायण के छ महीने में -मा गुन, पैत, वैशाल, चेठ, भवार मौर भावण, समा दक्षिणायन के महीने में है--माख पद, पाश्विन, कार्षिक, मगधिर, पोप भोर माप, उचरायण के छ महीने क्रम से शक्ति को घटाते हैं भौर दक्षिणायन के छ महीने कम से शक्ति को बढ़ाते हैं, बर्ष भर में सूर्य बारह राशियों पर फिरता है, दो २ राशियों से भाव पदन्ती है इसी सिमे एक वर्ष की
भतु सामाविक होती हैं, मपपि मिन २ क्षेत्रों में उक पात एकही समय में नहीं छगती है समापि इस भार्यावर्ष (हिन्दुखान) के देशों में तो प्रायः सामान्यतया इस कमे से पातु गिनी मावी -
यसन्त मातु-फागुन पौर घेत, प्रीष्म ऋतु-वैशाख भौर बेठ, मासट मातुभापार और भाषण, वर्षा तु-मानपद और माधिन, सरत् भातु-कार्तिक मौर मृगधिर, हेमतशिशिर माज-पोप और माष ।
यहाँ वसन्त मत का मारम्भ मपपि फागुम में गिना है परन्तु जैनाचार्यों ने चिन्ता मणि भावि मन्त्रों में सान्ति के अनुसार पातुमो को माना है तथा थाईपर मावि मन्य माधामों मे भी समान्ति के ही हिसाब से सभी को माना है मौर या ठीक भी, उन के मतानुसार मातुयें इस प्रकार से समझनी पारिमें
पतु पीपम मेपरु प बानो । मिथुन फर्क प्रावट पातु मानो ॥ बर्षा सिंहर न्या जानो । घरद प्रातू तुन पधिक मानो । पना मकर हेमन्त बुहोम । शिशिर शीत पर बरसै सोय ॥
मतु वसन्त है कुम्मा मीन । यहि विपि तु निरन कीन ॥१॥ 1-नी पम्ति पर २-ओमम मम मात्रामों में भरेपर" माया ममाम्त म सम्वार