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चैनसम्प्रदायशिक्षा ||
8 – वसन्तऋतु की हवा महुत फायदेमन्द मानी गई है इसी लिये वास्तकारों का कमन है कि “वसन्ते भ्रमण पम्मम्" अर्थात् वसन्त ऋतु में भ्रमण करना पथ्य है, इस किये इस ऋतु में प्रात काल तथा सायंकाल को बापू के सेवन के लिये वो चार मील तक अवश्य जाना चाहिये, क्योंकि ऐसा करने से वायु का सेवन भी हो जाता है तथा जाने जाने के परिश्रम के द्वारा कसरत भी हो आती है, देखो । किसी बुद्धिमान् का कथन है कि- "सौ दवा और एक हवा" यह बात बहुत ही ठीक है इसलिये भारोग्यता रखने की इच्छानालों को उचित है कि अवश्यमेव प्रात काल सदैव दो भार मील तक फिरा करें ॥ ग्रीष्म ऋतु का पथ्यापथ्य ॥
श्रीष्म ऋतु में शरीर का कफ सूखने लगता है तथा उस फफ की खाली जगह में हवा भरने लगती है, इस ऋतु में सूर्य का ताप जैसा जमीन पर स्थित रस को लॉंच ऐसा है उसी प्रकार मनुष्यों के शरीर के भीतर के कफरूप प्रवाही ( बहनेवाले ) पदार्थों का शोषण करता है इस लिये सावधानता के साथ गरीब और अमीर सब ही को अपनी २ क्षति के अनुसार इस का उपाय अवश्य करना चाहिये, इस ऋतु में चितने गर्म पदार्थ हैं ये सब अपथ्य हैं यदि उन का उपयोग किया जाये तो शरीर को बड़ी हानि पहुँचती है, इस छिपे इस ऋतु में जिन पदार्थों के सेवन से रस न घटने पावे अर्थात् बितना रस सूखे उतना ही फिर उत्पन्न हो जावे और वायु को जगह न मिलसके ऐसे पदार्थों का सेवन करना चाहिये, इस ऋतु मधुर रसनाळे पदार्थों के सेवन की भाषश्म कता है और वे स्वामानिक नियम से इस ऋतु में प्राम' मिळते भी हैं जैसे- पके आम, फालसे, सन्यरे, नारगी, इसकी नेचू जामुन और गुलामबामुन मावि, इस लिये स्वाभा विक नियम से भागश्यकतानुसार उत्पन्न हुए इन पदार्थों का सेवन इस ऋतु में भगक्ष्म करना चाहिये ।
मीठे, ठंडे, इसके और रसवाले पदार्थ इस ऋतु में अधिक स्वाने चाहियें बिन से क्षीण होनेवाले रस की कमी पूरी हो जावे ।
गेहूं, चावल, मिश्री दूध पर जब शरा हुआ सभा मिश्री मिलाया हुआ वही और भी भावि पदार्थ स्वाने चाहिये, ठंडा पानी पीना चाहिये, गुलाब तथा केवड़े के अस का उपयोग करना चाहिये, गुलाब, केवड़ा चाहिये ।
सस
और मोतिये का असर सूचना
प्रात काल में सफेद मोर हम्का सूती वस्त्र, वृक्ष से पांच बजे तक सूखी जीन वा गजी का कोई मोटा यम तथा पांच बजे के पश्चात् महीन वस्त्र पहना चाहिये, बर्फ
है, इस के बनाने की विधि
१ श्री के गुण इसी अम्मान के पांचवें प्रकरण में आदि वैद्यक प्रथा में भगवा काम देखा।