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चतुर्थ अध्याय ॥
२७५ यद्यपि अनेक जातियां है परन्तु उन सब में मुख्य मूंग की दाल है, क्योंकि-यह रोगी तथा साधारण प्रकृतिवाले पुरुषों के लिये प्रायः अनुकूल होती है, मसूर की दाल भी हलकी होने से प्रायः पथ्य है, इसलिये इन दोनों में से किसी दाल को अच्छी तरह सिजा कर तथा उस में सेंधानमक, हींग, धनिया, जीरा और धनिये के पत्ते डाल कर पतली दाल अथवा उसका नितरा हुआ जल रोगी तथा अत्यन्त निर्बल मनुष्य को देना चाहिये, क्योंकि उक्त दाल अथवा उस का नितरा हुआ जल पुष्टि करता है तथा दवा का काम देता है।
वीमार के लिये दूध भी अच्छी खुराक है, क्योंकि वह पुष्टि करता है तथा पेट में बहुत भार भी नहीं करता है परन्तु दूध को बहुत उबाल कर रोगी को नहीं देना चाहिये, क्योंकि-बहुत उबालने से वह पचने में भारी हो जाता है तथा उस के भीतर का पौष्टिक तत्त्व भी कम हो जाता है, इसलिये दुहे हुए दूध में से वायु को निकालने के लिये अथवा दूध में कोई हानिकारक वस्तु हो उस को निकालने के लिये अनुमान ५ मिनट तक थोड़ासा गर्म कर रोगी को दे देना चाहिये, परन्तु मन्दाग्निवाले को दूध से आधा पानी दूध में डालकर उसे गर्म करना चाहिये, जब जल का तीसरा भाग शेष रह जावे तब ही उतार कर पिलाना चाहिये, बहुतसे लोग जलमिश्रित दूध के पीने में हानि होना समझते है परन्तु यह उन की भूल है, क्योकि जलमिश्रित दूध किसी प्रकार की हानि नही करता है।
डाक्टर लोग निर्बल आदमियों को कॉडलीवर ऑइल नामक एक दवा देते है अर्थात् जिस रोग में उन को ताकतवर दवा वा खुराक के देने की आवश्यकता होती है उस में वे लोग प्राय. उक्त दवा को ही देते हैं, इस के सिवाय क्षय रोग, भूख के द्वारा उत्पन्न हुआ रोग, कण्ठमाला, जिस रोग में कान और नाक से पीप बहता है वह रोग, फेफसे का शोथ (न्यूमोनिया), कास, श्वास (ब्रोनकाइटीस,), फेफसे के पड़त का घाव, खुल खुलिया अर्थात् बच्चे का बड़ा खास और निर्बलता आदि रोगों में भी वे लोग इस दवा को देते हैं, इस दवा में मूल्य के भेद से गुण में भी कुछ भेद रहता है तथा अल्पमूल्य
१-मूग की दाल सर्वोपरि है तथा अरहर (तूर ) की दाल भी दूसरे नम्बर पर है, यह पहिले लिख ही चुके हैं अत यदि रोगी की रुचि हो तो अरहर की दाल भी थोडी सी देना चाहिये।
२-परन्तु यह किसी २ के अनुकूल नहीं आता है अत जिसके अनुकूल न हो उस को नहीं देना चाहिये परन्तु ऐसी प्रकृतिवाले (जिन को दूध अनुकूल नहीं आता हो) रोगी प्राय बहुत ही कम होते है ॥
३-मा की अनुपस्थिति में अथवा मा के दूध न होने पर बच्चे को भी ऐसा ही (जलवाला) दूध पिलाना चाहिये, यह पहिले तृतीयाध्याय मे लिख भी चुके है ।।
४-इस दवा को पुष्ट समसकर उन (डाक्टर ) लोगों ने इसे रोग की खुराक में दाखिल किया है ।।