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जैनसम्प्रदामशिक्षा ||
रोगी के खाने योग्य खुराक ॥
पश्चिमीम विद्वानों ने इस सिद्धान्त का निश्चय किया है कि सब प्रकार की खुराक की अपेक्षा साबूदाना, मारारूट और टापीओ का, ये तीन चीजें सब से इसकी और सहव में पचनेवाली हैं अर्थात् जिस रोगमें पाचनशक्ति बिगड़ गई हो उस में इन तीनों वस्तुओं में से किसी वस्तु का खाना बहुत ही फायदेमन्द है ।
साबूदाना को पानी ना दूष में सिखा कर तथा भावश्यकता हो तो गोड़ी सी मिश्री खास कर रोगी को पिलाना चाहिये, इस के बनाने की उत्तम रीवि यह है कि - बावे वूम और पानी को पतीकी या किसी काईदार बर्तन में डाल कर चूल्हे पर चढ़ा देना चाहिये, जब वह अवहन के समान उबलने लगे तब उस में साबूदाना को डालकर डक देना चाहिये, स्वग पानी का भाग जल आवे सिर्फ खूप मात्र क्षेष रह जाने तब उतार कर जोड़ी सी मिश्री डालकर खाना चहिये ।
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साबूदाना की अपेक्षा चामल मद्यपि पचने में दूसरे दर्जे परे है परन्तु साबूदाना की अपेक्षा पोषण का सत्य पावलों में अधिक है इसलिये रुचि के अनुसार बीमार को वर्ष के पीछे से तीन वर्ष के भीतर का पुराना चावल देना चाहिये धर्मात् वर्षभर के भीतर का मौर तीन वर्ष के बाद का ( पांच छ वर्षो का ) भी चाबल नहीं देना बाहिये ।
माघे दूष तथा भाषे पानी में सिबाया हुआ भात बहुत देव दूप में सिखाया हुआ भास पूर्व की अपेक्षा भी अधिक मह बीमार और निर्व आदमी को पचता नहीं है इस किये बीमार को दूध में सिजामा हुआ मात नहीं देना चाहिये, मुखार, दस्त, मरोड़ा और अमीर्ष में प्रावल देना चाहिये, क्योंकि इन रोगों में भाबल फायदा करता है, बहुत पानी में राधे हुए भावस सभा उन का निकाला हुआ मांड ठेका भौर पोपण कारक होता है।
इड आदि दूसरे देशों में हैजे की बीमारी में सूप और ग्राम देते हैं, उस की भपेक्षा इस देव में उक्त रोगी के लिये अनुकूल होने से चावलों का मांड बहुत फायदा करता है, इस भाव का निश्चय ठीक रीति से हो चुका है, इस के सिवाय भवीसार वर्षात् दस्तों की सामान्य बीमारी में घायलों का मोसामप्प दवा का काम देता है अर्थात् दस्तों को बंद कर देता है । रोगी के लिये विधिपूर्वक बनाई हुई दाल भी बहुत फायदा करती है तथा दालों की १-अप सापूदाना को अपया चापम देर में हजम होते है आर्यों की नलिका भावपुरा है, न
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नसिकन्तु यह भूमिक
ऐसा भी जीममवार (ज्योनार) धायद ही कोई होता होगा जिस में बाक न होती से निवार कर देगन से यह भी तनाव का उपयोग प्रभार भी बहुत है, बि सरकार इम में तत्व अधिक है महांतक कि कई एक दलों में माथ
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पुष्टिकारक होता है, यद्यपि पुष्टिकारक तो होता है परन्तु