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चतुर्थ अध्याय ॥
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सामान्य पथ्यापथ्य आहार ॥
पथ्यआहार ॥
कुपथ्यआहार ॥ पुराने चावल, जौ, गेहूँ, मूंग, अरहर उडद, चवला, वाल, मोठ, मटर, ज्वार, (तूर) चना और देशी बाजरी, (गर्म मका, ककड़ी, काचर, खरबूजा, गुवारफली, बाजरी थोड़ी ), घी, दूध, मक्खन, छाछ, कोला, मूली के पत्ते, अमरूद, सीताफल, शहद, मिश्री, बूरा, बतासा, सरसो का तेल, कटहल, करोदा, गूंदा, गरमर, अञ्जीर, गोमूत्र, आकाश का पानी, कुए का पानी जामुन, बेर, इमली और तरबूज ॥
और हँसोदक जल, परवल, सरण, चॅदलिया, भैंस का दूध, दही, तेल, नयागुड, वृक्षा बथुआ, मेथी, मामालणी. मली. मोगरी के झुण्ड का पानी, एकदम अधिक पानी कद्दू, धियातोरई, तोरई, करेला, कॅकेड़ा; .
का पीना, निराहार ठढा पानी पीना और
। मैथुन कर के पानी पीना ॥ भिण्डी, गोभी, (वालोल थोड़ी) और कच्चे
वासा अन्न, छाछ और दही के साथ केले का शाक ॥
खिचडी और खीचडा आदि दाल मिले हुए टाख, अनार, अदरख, ऑवला, नीबू, पदार्थों का खाना, सूर्य के प्रकाश के हुए बिजौरा, कवीठ, हलदी, धनिये के पत्ते. विनाखाना, अचार, समयविरुद्ध भोजन कपोदीना, हींग, सोठ, काली मिर्च, पीपर, ध.
रना और सब प्रकार के विषो का सेवन ॥ निया, जीरा और सेंधा नमक ॥
ठढी खीर चासनी और खोवे (मावे )के
पदार्थों के सिवाय दूध के सब वासे पदार्थ, हड़, लायची, केशर, जायफल, तज, गुजरात के चोटिया लड्डु, केले के लड्डु, रासौंफ, नागरवेल के पान, कत्थे की गोली, यण के लड्डु, गुलपपडी, तीन मिलावटो की धनिया, गेहूँ के आटे की रोटी, पूडी, भात, तथा पाच मिलावटों की दालें, कडे कच्चे मीठाभात, बूदिया, मोतीचूर के लड्डु, जले- और गरिष्ठ पदार्थ, मैदे की पूडी, सत्तू, बी, चूरमा, दिलखुशाल, पूरणपूडी, रबडी, पेडा, वरफी, चावलों का चिडवा, रात्रि का दूधपाक (खीर), श्रीखण्ड (शिखरन ), भोजन, दस्त को बन्द करनेवाली चीज, मैंदेका सीरा, दाल के लड्ड, घेवर, सकर- अत्युप्ण अन्नपान, वमन, पिचकारी दे दे पारे, बादाम की कतली, घी में तले हुए कर दस्त कराना, चवेने का चावना, पाच मौठ के मुजिये ( थोड़े ), दूध और घी डाले घण्टेसे पूर्व ही भोजनपर भोजन करना, हुए सेव, रसगुल्ला, गुलाबजामुन, कलाकन्द, बहुत भूखे रहना, मूंख के समय में जलका
१-यद्यपि इस बात को आधुनिक डाक्टर लोग पसन्द करते हैं तथापि हमारे प्राचीन शास्त्रकारों ने सलाई से पेशाव तथा वस्ती (पिचकारी) से दस्त कराना पसन्द नहीं किया है और इसका अभ्यास भी अच्छा नहीं है, हा कोई खास करणा हो तो दूसरी बात है ।।