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चतुर्थ अध्याय॥
२५९ तिलकुटी-मलका, वृष्य, वातनाशक, कफपित्तकर्ता, बृंहण, भारी, सिग्ध तथा अधिक मूत्र के उतरने का नाशक है ।
होला-जिस धान (अन्न) का होला हो उस में उसी धान के समान गुण होते हैं, जैसे-चने के होले चने के समान गुणवाले है, इसी प्रकार से अन्य धान्यों के होलों का भी गुण जान लेना चाहिये ॥
उम्बी-कफकर्ता, बलकारी, हलकी और पित्तकफनाशक है ॥
जॉली-जीभ के जकड़ने को दूर करनेवाली तथा कण्ठ को शुद्ध करनेवाली है, यदि इस को धीरे २ पिया जावे तो यह रुचि को करती है तथा अग्नि को प्रदीप्त करती है ।। __ दुग्ध कूपिका-बलकारी, वातपित्तनाशक, वृष्य, शीतल, भारी, वीर्यकर्ता, बृंहणी, रुचिकारी, देहपोषक तथा नेत्रतेजोवर्धक है ।।
ताहरी बलकारी, वृष्य, कफकारी, बृहणी, तृप्तिकर्ता, रुचिकारी और पित्तनाशक है ।।
नारियल की खीर-स्निग्ध, शीतल, अतिपुष्टिकर्ता, भारी, मधुर और वृष्य है तथा रक्तपित्त और वादी को दूर करती है ।।
मण्डक-बृहण, वृष्य, बलकारी, अतिरुचिकारक, पाक में मधुर, ग्राही, हलके और त्रिदोष नाशक हैं ॥
१-तिलों में गुड या शक्कर डालकर कूट डालने से यह तयार होता है, पूर्व के देशों में यह सकटचतुर्थी (सकट चौथ ) को प्राय प्रतिगृह में बनाया जाता है ।
२-फलियों के धान्य आधे भुने हुए हों तथा उन का तृण जल गया हो उन को होला कहते हैं। ३-गेहूँ की अधपकी वाल को जो तिनकों की अग्निमें भून लेवे, उसे उम्बी कहते है।।
४-कच्चे आमो को पीस कर उन मे राई सेंधानमक और भुनी हींग को मिला कर जल में घोर देवे इस को जाली कहते हैं।
५-चावलों का चूर्ण कर उस में गाढा मावा (खोहा) मिला कर कुप्पी से बना लेवे, फिर उन को घी में छोड कर पकावें, फिर उन को निकाल कर बीच में छेद कर मिश्री मिला हुआ गाढा दूध भर देवे और शाहकसे मुख वद करके फिर घी मे पकावे, जव पीले रंग की होजावें तव धीमे से निकालकर कपूर मिली चासनी मे तल लेवे, इसको दुग्धकूपिका कहते हैं ।
६-हलदी मिले घी मे प्रथम उडद की वडियों को तथा इन्हीं के साथ धुले हुए स्वच्छ चावलों को लेवे, फिर जितने मे ये दोनों सिद्ध हो जावें उतना जल चढाकर पकावे तथा नमक अदरख और हींग को अनुमान माफिक डाले तो यह ताहरी सिद्ध होती है । ____७-नारियल की गिरी को चाकू से वारीक कतर कर अथवा घियाकस पर वारीक रगड कर दूध मे खाड और गाय का घी डाल कर मन्दाग्नि से औंटावे तो नारियल की खीर तैयार हो जाती है । ___८-सफेद गेहुओं को जल मे धोकर ओखली में डालकर मूसल से कूट डाले, फिर इन को धूप में सुखाकर चक्की से पीसकर मैंदा छानने की चालनी में छानकर मैदा कर लेवे, फिर इस मैदा को जल मे कोमल उसन कर खूब मर्दन करे, फिर हाय से लोई को वढा कर पूडी के समान वेल लेवे, फिर चूल्हे पर औंधे मुख के खपडे पर इस को डाल कर मन्दानि से सेके, ये सिके हुए मण्डक कहलाते हैं ।