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चतुर्थ अध्याय ॥
२६१ कपूरनाली-इस में गुझिया वा गूझा के समान गुण है ॥ फेनी-बृहण, वृष्य, बलकारी, अत्यन्त रुचिकारी, पाक में भी मधुर, ग्राही, और त्रिदोषनाशक है तथा हलकी भी हैं ।
मैदा की पूड़ी-इन में भी फेनी के समान सब गुण है ॥ सेव के लड्डे-इन में भी सब गुण फेनी के समान ही हैं ।
यह सक्षेपे से मिश्रवर्ग का कथन किया गया है, बुद्धिमान् तथा श्रीमानों को उचित है कि-निकम्मे तथा हानिकारक पदार्थों का सेवन न कर के इस वर्ग में कहे हुए उपयोगी पदार्थों का सदैव सेवन किया करें जिस से उन का सदैव शारीरिक और मानसिक बल बढता रहे ॥
यह चतुर्थ अध्याय का वैद्यकभाग निघण्टुनामक पाचवा प्रकरण समाप्त हुआ।
१-मोवन दी हुई मैदा को उसन कर लम्वा सम्पुट वनावे, उस में लोग भीमसेनी कपूर तथा खाड को मिला कर भर देवे, फिर मुख को वद करके घी मे सेक लेवे, इस को कर्पूरनालिका कहते हैं । __ २-प्रथम मैदा को सान कर उस में घी डालकर लम्बी २ बत्ती सी वनावे, फिर उन को लपेट कर पुन लम्बी वत्ती करे, इस के बाद उन को बेलन से बेलकर पापडी बना लेवे, फिर इन को चाकू से कतर पुन. वेले, फिर इन पर सट्टक का लेपकरे (चावलों का चून घी और जल, इन सब को मिला कर हथेली से मथ डाले, इस को सहक कहते हैं ) अर्थात् सट्टक से लोई को लपेट कर बेल लेवे अर्थात् उसे गोल चन्द्रमा के आकार कर लेवे, फिर इनको घी मे सेके, घी में सेकने से उन में अनेक तार २ से हो जावेंगे, फिर उनको चासनी में पाग लेवे, अथवा सुगन्धित वूरे में लपेट लेवे इन को फेनी कहते हैं ।
३-मोवन डाली हुई मैदा को उसन के लोई करे, फिर उन को पतली २ वेलकर घी मे छोड देवे, जव सिक जावे तव उतार ले॥
४-मोवन डाली हुई मैदा के सेव तैयार करके घी मे सेक लेवे, फिर इन के टुकडे कर के खाड मे पाग कर लडू वनालेवे ॥
५-इस मिश्रवर्ग में कुछ आवश्यक योडे से ही पदार्थों का वर्णन किया गया है तथा उन्हीं में से कुछ पदार्थों के बनाने की विधि भी नोट में लिखी गई है, शेप पदार्थों का वर्णन तथा उन के वनाने आदि की विधि, एव उन के गुण दूसरे वैद्यक ग्रन्थों में तथा पाकशास्त्र में देखना चाहिये, यहा विस्तार के भय से उन सव का वर्णन नहीं किया गया है।