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मैनसम्प्रदामशिक्षा ||
नहीं होते हैं, यदि मन्द भी हों तो मैल दूर होकर छिद्र खुल जाते है तथा ऐसा करने से वाद स्वाम और फुन्सी आदि चमड़ी के रोग भी नहीं होते हैं ।
प्रत्येक मनुष्यको उचित है कि दाल और चाक यादि नित्म की खुराक में तथा उस के अतिरिक्त भी नींबू को काम में लामा करे, क्योंकि यह अधिक गुणकारी पदार्थ है मौर सेवन करने से आरोम्यता को रखता है ।
म्बजुर — पुष्टिकारक, खाविष्ठ, मीठी, ठड्डी, माही, रकशोषक, इदम को हितकारी और त्रिदोपहर है, श्वास, थकावट, क्षम, विप, प्यास, झोप ( शरीर का सूखना) और अम्लपित्त बैसे महाभयंकर रोगों में पथ्य और हितकारक है, इस में अवगुण केवल इतना है कि यह पचने में भारी है और क्रमि को पैदा करती है इस लिये छोटे बाल को को किसी प्रकार की भी खजूर को नहीं खाने देना चाहिये ।
खजूर को घी में तसकर खाने से उक्त दोनों दोष कुछ फम हो जाते हैं।
गर्मी की ऋतु में खजूर का पानी कर सभा उस में थोड़ा सा अमिनी ( इमली ) का खड्डा पानी डाल कर धर्म की तरह बनाकर यदि पिया बागे तो फायदा करता है। fluor खजूर और सूखी खारक ( छुहारा ) भी एक प्रकार की खजूर ही है परन्तु उस के गुण में घोड़ासा फर्क है |
फालसा, पीलू और करोंदे के फल – ये तीनों पित तथा भामास के नाशक है, सब प्रकार के प्रमेह रोग में फायदेमन्द है, उप्म काल में फासे का शर्बत सेवन करने से बहुत लाभ होता है, कचे फालसे को नहीं खाना चाहिये क्योंकि वह पित्त को उत्पन्न करता है ॥
सीताफल -- मधुर, ठका मौर पुष्टिकारक है परन्तु कफ और वायु को उत्पन्न करता है ॥
जामफल- स्वादिष्ठ, ठठा, पृप्य, रुचिकर, मीर्यवर्धक और त्रिदोपहर है परन्तु तीक्ष्ण और भारी है, कफ और वायु को उत्पन्न करता है किन्तु उन्माद रोगी (पागम ) के लिये भष्म है ॥
सकरकन्द - मधुर, रुचिकर, हृदय को हितकारी, श्रीवर, माही और पिसहर है, भवीसार रोगी को फायदेमन्द है, इस का मुरब्बा भी उत्तम होता है |
अञ्जीर-ठंडी और भारी है, रफविकार, वाद, बायु तथा पित को नष्ट करती है,
१- बस को पूर्व में तफरी वच्य भ्रमर भी कहते हैं, सब से अच्छा अपत्र प्राय ( महाबाज) प होता क्योंकि वहाँ का भ्रम मीना चरित्र मल बीजार बहुत बड़ा होता