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चतुर्थ अध्याय ॥
२४९ कृत्रिम अग्नि पदार्थों को यथावस्थित (ठीक तौर से ) कभी नहीं पचा सकती है, जैसे एजिन में वायलर को अधिक जोर मिलने से वह गाडियों को जोर से तो चलाता है परन्तु वायलर के माप और परिमाण से गर्मी के अधिक बढ़ जाने से अधिक भार को खीचता हुआ वह कभी फट भी जाता है, जैसे अधिक भार को खीचने के लिये वायलर को अधिक गर्मी की आवश्यकता हो यह नियम नहीं है किन्तु अधिक भार को खीचने के लिये बडे एजिन और बड़े ही वायलर की आवश्यकता है इसीप्रकार जन्म से छोटे कद वाला आदमी दिल में यदि ऐसा विचार करे कि मै गर्म मसालों या गर्म दवा से अग्नि को तीत्र कर अधिक खुराक को खाकर कद और ताकत में बढ जाऊ तो यह उसकी महाभूल है, क्योंकि ऐसा विचार कर यदि वह तदनुसार वर्चाच करेगा तो अपनी असली ताकत को भी खो बैठेगा, क्योकि जैसे अधिक जोर के काम करने के लिये बड़े एजिन
और बड़े वायलर को बनाना पडता है उसीप्रकार अविक ताकत के बढ़ाने के लिये भी सर्वोत्तम दवा के उपयोग, ब्रह्मचर्य व्रत के पालन और उचित वाव से चलने आदि की आवश्यकता है अर्थात् इस व्यवहार से खाभाविक शक्ति उत्पन्न होती है और स्वाभाविक शक्तिवाला पुरुप महाशक्ति सम्पन्न तथा बड़े कदवाले सन्तान को उत्पन्न कर सकता है, ऐसे मनुप्यको नकली उपचार करने की कोई आवश्यकता नहीं रहती है।
प्रिय पाठकगण ! क्या आपने इतिहास में नहीं पढ़ा है कि-हमारे इस देश के राठौर आदि राजा लोग बारह २ वर्ष तक दिल्ली में बादशाह के पास रह कर ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करते थे और जब वे लोग ऋतु के समय अपनी पत्नी में गमन करते थे तब उन के अमोघ (निष्फल न जानेवाले) वीर्य से केशरीसिंह, पद्मसिंह, जयसिंह कच्छावा और प्रतापसिंह सिसोदिया जैसे पुरुप सिंह उत्पन्न होतेथे, यद्यपि खुराक उन की साधारण ही थी परन्तु वोव अत्युत्तम था।
बहुत से अज्ञ लोग इस कथनसे यह न समझ जावे कि शास्त्रकारो ने गर्म मसालो की अत्यन्त निन्दा की है इसलिये इन को कभी नहीं खाना चाहिये, इस लेख का तात्पर्य केवल यही है कि देश काल और प्रकृति के द्वारा अपने हिताहित का विचार कर प्रत्येक वस्तु का उपयोग करना चाहिये, क्योंकि जिस को अपने हिताहित का विचार हो जाता है वह पुरुप कमी धोखे में नहीं आता है, तात्पर्य यह है कि गर्म मसालो का निषेध जिस विषय में किया है उसी विषय में उन का निपेध समझना चाहिये तथा जिस विषय में उन का अगीकार करना लिखा है उसी विषय में उन का अंगीकार करना चाहिये, जैसे-- देखो ! जिस मनुष्य की अत्यन्त वायु की तासीर हो तो वायु को शरीर में बराबर रखने के लिये खुराक के साथ उस को परिमित गर्म मसाला लेना चाहिये, इसीप्रकार जब मिठाई
१-स्याद्वादपक्षन्याय के देखने से मनुष्य को किसी प्रकार की शङ्का नहीं प्राप्त होती है ।
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