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चतुर्थ अध्याय ॥
सुहागा - अग्निकर्ता, रूक्ष कफनाशक, वातपित्तकर्त्ता, कासनाशक, बलवर्धक, स्त्रियों के पुष्प को प्रकट करनेवाला, व्रणनाशक, रेचक तथा मूढ़ गर्भ को निकालने वाली है ॥
मिश्रवर्ग ॥
दाल और शाक के मसाले - कुसग दोष तथा अविद्या से ज्यों २ प्राणियों की विषयवासना बढ़ती गई त्यों २ उस ( विषयवासना ) को शान्त करने के लिये धातुपुष्टि तथा वीर्यस्तम्भन की औषधों का अन्वेषण करते हुए मूर्ख वैद्यों आदि के पक्ष में फँस कर अनेक हानिकारक तथा परिणाम में दुःखदायक औषधो का ग्रहण कर मन माने उलटे सीधेमार्ग पर चलने लगे, यह व्यवहार यहा तक बढ़ा और बढ़ता जाता है कि लोग मद्य, अफीम, भाग, माजूम, गॉजा और चरस आदि अनेक महाहानिकारक विषैली चीजों को खाने लगे और खाते जाते है परन्तु विचार कर देखा जावे तो यह सब व्यवहार जीवन की खराबी का ही चिह्न है ।
ऊपर कहे हुए पदार्थों के सिवाय लोगों ने उसी आशा से प्रतिदिन की खुराक में भी कई प्रकार के उत्तेजक स्वादिष्ठ मसालों का भी अत्यन्त सेवन करना प्रारम्भ कर दिया कि जिस से भी अनेक प्रकार की हानिया होचुकी है तथा होती जाती हैं ।
प्राचीन समय के विचारवाले लोग कहते हैं कि जगत् के वार्त्तमानिक सुधार और कला कौशल्य ने लोगों को दुर्बल, निःसत्व और बिलकुल गरीब कर डाला है, देशान्तर के लोग द्रव्य लिये जा रहे हैं, प्राणियों का शारीरिक बल अत्यत घट गया, इत्यादि, विचार कर देखने से यह बात सत्य भी मालूम होती है ।
वर्तमान समय के खानपान की तरफ ही दृष्टि डाल कर देखो कि खानपान में खादिgal का विचार और वेहद शौकीनपन आदि कितनी खराबियों को कर रहा है और कर चुको है, यद्यपि प्राचीन विद्वानों तथा आधुनिक वैद्य और डाक्टरों ने भी साधारण खुराक की प्रशंसा की है परन्तु उन के कथन पर बहुत ही कमलोगों का ध्यान है, देखो । मनुष्यों की प्रतिदिन की साधारण खुराक यही है कि - चावल, घी, गेहूँ, बाजरी और ज्वार आदि की रोटी, मूग, मौठ और अरहर आदि की दाल,
१ - जहा क्षारद्वय कहे गये हैं वहा सज्जीखार और जवाखार लेने चाहियें, इन में सुहागा के मिलने से क्षारत्रय कहाते हैं, ये मिले हुए भी अपने २ गुण को करते हैं किन्तु निलने से गुल्म रोग को शीघ्र ही नष्ट करते हैं, पलाश, थूहर, आँगा ( चिरचिरा), इमली, आक और तिलनालका खार तथा सज्जीखार और जवारखार ये आठों मिलने से क्षाराष्ट्रक कहलाते हैं, ये आठों खार अनि के तुल्य दाहक हैं तथा शूल और गुल्मरोगको समूल नष्ट करते हैं ॥
२-जव नैत्यिक तथा सामान्य खानपान में अत्यन्त शौकीनी वढ रही है तो भला नैमित्तिक तथा विशेष व्यवहारों में तो कहना ही क्या
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