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बैनसम्प्रदायविक्षा ॥ नारियल-पहुत मीठा, पिकना, हदय को हितकारी, पुष्ट, पम्तिशोपक भोर रस। पित्तनाशक है, पारेभादि की गर्मी में तथा भम्सपिच में इस का पानी उमा नासिकर खण्डपाय बहुत फायदेमन्द है मौर बीयबफ है।
कर देशों में बहुत से लोग नारिमठ के पानी को उप्ण फतु में पीते हैं यह पेठक फायदेमन्द होता है परन्तु इतना अवश्य लयाल रखना चाहिये कि निरस (निजे, साठी भर्थात् भन्न साये पिना) फलेमे तमा दिन फो निद्रा लेफर उठने के पीछे एक पटेवा इस को नहीं पीना चाहिये भो इस बात का सपास नहीं रमलेगा उस को जन्म भर प. वाना पड़ेगा ॥
स्वरनूजा तथा मीठे म्बहे कापर—ये भी कही ही की एक बाति है, जो नदी की मात्र में पकता है उस को सरयूमा कहते हैं, यह स्वाद में मीठा होता है, सस नऊ के स्वरयूने रस मीठे होते है लोग इस का पना बना कर भी खाते हैं, यह गर्म होता हे जिन दिनो में हेमा पम्ता हो उन दिनों में सरममा निलकुल नहीं खाना चाहिये।
मो नमीन तमा खेतों में पके उसे किसी भौर कापर कहते हैं, ककनी मोर कापर मारपार मावि देशों में पहुच उस्पन होते है, ककसी को मुला कर उस का सूखा साफ भी बनाते हैं उस को खेलरा कहते हैं तमा कापर को सुखाकर उस का जो सूसा साफ मनाते हैं उसको कारी कहते हैं, इस को वास या शाक मैं गम्ते हैं, यह साने में साविष्ठ तो होता है सबा लोग इसे प्राय गाते मी हैं परन्तु गुणों में तो सब फमें की अपेक्षा हलके दर्व के (आत्म गुपगाले) तथा हानिकारक फल ये ही (कली मार फापर) है, क्योंकि ये तीनों दोषों को विगारवे, ये पे-बायु मौर कफ को करते हैं किन्तु पकने के मात्र तो विक्षेप (पहिले की अपेक्षा अधिक) फ तथा वायु को बिगाड़ते हैं ।
फलिन्द (मतीरा या तरपूज)-स के गुण शाकवर्ग में पूर्व म्सियुके । विशेष कर मह भी गुणों में ककसी और कापर समान ही है।
भप्रक, पारदमस्म (पारे की भस्म ) और स्वर्णमस्म, इन तीनों की मात्रा सेते समम कफाराम (ककारादि नामवासे भाठ पदार्थ) वधि, क्योंकि उक्त मात्रामों के ते समय ककाराठक का सेवन करने से वे उक मात्रामों के गुणों को सराप कर देते, कमाराठफ ये हैं--कोठा, केसे पन्द, करोंदा, कामी, र, फरेम, कमी भौर काकिन्य (मतीरा ), इस लिये इन भाठों वस्तुओं का उपयोग उस पातुओं की मात्रा को साने पाठे को नहीं करना चाहिये ।।
१-मुना है कि यरसूचे प्रपना भौर पाबत वावे समय बपि गुमान मा चार तो प्राची मान मर ही पाता है कि वह भी मन नहीं है।