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बैनसम्प्रदायश्चिया ॥ कारीगरी मौर व्यापार की वस्तुयें तो दूर रही फिन्तु हमारे सानपान की पीने मी पर देव कीही पसन्द होने लगी और बना पनाया पास दुग्ध और शर्करा भी परदेश की मेन सब लोग निर्वाह करने लगे, देखो ! जन मोरस की खार प्रपम यहाँ भोड़ी २ माने उमी सप उस को देशी चीनी से स्वच्छ और सस्ती देख कर लोग उस पर मोहित होने म्ये, मासिरकार समस्त देश उस से व्याप्त हो गया भौर देखी सकर झम २ से नाममा होती गई, नतीजा यह हुआ कि-अप केयस ओषधिमात्र के लिये ही उस का प्रचार होता है।
इस पात को प्राय सब ही मान सकते हैं कि-विमयती सार ईस के रस से नहीं पनती है, क्योंकि वहां ईस की सेसी ही नहीं है किन्तु पीट नामद और जुवार 4 जाति के टटेलों से भगषा इसी प्रकार के भन्य पदामों में से उन का सत्व निभा कर वहाँ सांड बनाई जाती है, उस को साफ करने की रीति “पन्साकोपेरिया नियनिका रे ५२७ पृष्ठ में इस प्रकार सिसी है
एक सौ पाठीस या एक सौ अड़सठ मन पीनी लोहे की एक बड़ी रंग में रातभर गाई जाती है, पीनी गाने के लिये रंग में एक यन्त्र लगा रहता है, सामही गर्म माफ के कुछ पाइप भी डेग में लगे रहते हैं, मिस से निरन्तर गर्म पानी रंग में गिरता है, यह रस का धीरा नियमित व तक औटाया जाता है, नर बहुत मैली पीनी साफ की बाती है तब वह खून से साफ शेती है, गर्म वीरा स भौर सन की जालीवार येलियों से छाना जाता है, ये भैलियां बीच २ में साफ की जाती है, फिर वह भीरा जान परों की हड़ियों की रास की २० से १० पुटतक गहरी तर से छन कर नीचे रक्से हुए बर्सन में माता है, इस तरह छनने से धीरेन रग मत साफ मौर सफेद हो माता ऊपर मिले भनुसार शीरा बनकर तथा साफ होने के मनन्तर उस की दूसरी पार सफाई इस तरह से की जाती है कि एफ पसुप्फोम (चौकोनी) तपि फी रंग में कुछ पूने पानी के साथ पीनी रक्सी माती (निस में भोग साठ का खुन राम माता है) और प्रति सैफो में ५ से २० तक ही के कोयलों प पूरा राग जाता है इस्पानि, देसो! यह सब विषय भप्रेमों ने भपनी बनाई गई किताबों में हिस्सा है, पास से राक्टर गोग मिलते हैं फिनस पीनी के साने से अनेक रोग उत्पन्न होते हैं इस पर यदि कोई पुरुष या वका परे कि-विगपत के लोग इसी पीनी को साते हैं फिर उन को कोई बीमारी क्यों नहीं होती है। और पहा प्लेग जैसे भयंकर रोग क्यों नहीं उत्पन होते हैं ! तो इस उपर यह है कि-
बमान समय में विणत के लोग संसारमर में सम से भविक विधान वेचा भौर अभिकसर विद्वान् है (यह मात मायः सबने विदित ही है) ये लोग इस घर को पूवे भी नहीं है किन्तु वहां के लोगों के लिये तो स्वनी