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( १९३) जैसे श्री भगवत् की पाणी अर्द्ध मागधी भाषा में होने पर भी जो श्रोताओं की भाषा होती है वह उसी में परिणत हो जाती है इस कथन से स्वतः ही सिद्ध होगया कि जो श्रोताओं व देशियों को वाणी हो उसी में पुस्तकें और धार्मिक समाचार पूत्रों से लाभ विशेष हो जाता है अतएव सिद्ध हुआ कि धर्म प्रचार के लिये शुद्ध पुस्तकों और धार्मिक समाचार पत्रों की अत्यन्त आवश्यकता है इनके न होने से धपे प्रचार में चाया अत्यन्त हो रही है।
व्यवसाय प्रभा, धर्म प्रचार के लिये प्रति में पुस्तकों की अत्यन्त भावश्यकता है क्योंकि
संग्रह ही नहीं है व जिज्ञासु जन किस प्रकार लाम उठा सकते हैं धयः यत्न थोर विनय पर का संग्रह वा अन्य पुस्तकों का संग्रह जा होता तवठक धर्म प्रचार में विघ्न उपस्थित बहुत से मुमुनु जन इस प्रकार के पास से पुस्तक मंगवाने में प्रमाद सरते अपने मन से भिन्न मतों को
पुस्तकों का संग्रह जब तक नहीं र में विघ्न उपस्थित होते रहते है
मी है जो निज व्यय
भिन्न मतों को पुस्तक मंगवाने में उनके