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जैनसम्पदामा ||
मटर - रुचिकर, मीठा, पुष्टिकर, रूक्ष, माही, शक्तिवर्धक ( ताकत को भानेवाला), हलका, पिच कफ को मिटानेवाला और वायकर्ता है।
कलिकाल सर्वच श्री हेमचन्द्राचार्य ने निषण्टुराजमें पदार्थों के गुण और भवगुण लिखे हैं वे सब मुख्यतमा बनाने की क्रिया में तो रहते ही है यह तो एक सामान्य नात है परन्तु सस्कार के अदल बदल ( फेरफार ) से भी गुणों में अदल बदल हो बाता है, उदाहरण के लिये पाठक गण समझ सकते हैं कि पुराने घावों का पकाया हुआ भाव का होता है परन्तु उन्हीं के मुरमुरे मादि बहुत भारी हो जाते हैं, इसी प्रकार उन्हीं की बनी हुई खिचड़ी मारी, कफ पित्त को उत्पन्न करनेवाली, कठिनता से पचनेवाली, बुद्धि में बाधा डालनेवाली तथा दस्त और पेचाम को बढानेवाली है, एव थोड़े चल में उन्हीं भावकों का पकाया हुआ भात शीघ्र नहीं पचता है किन्तु उन्हीं चावकों का अच्छी सरह भोकर पंचगुने पानीमें स्यून सिद्धा फर तथा मांड निकाल कर भाव बनाने से वह बहुत ही गुणकारी होता है, इसी प्रकार खिचड़ी भी धीमी २ भांप से बहुत बेरक पका कर बनाई जाने से ऊपर लिखे दोषों से रहित हो जाती है।
मौर मोठ भादि ओ २ भन्न बातकर्ता है सभा ओ २ दूसरे मन दुप्पाक (कठिनता से पचनेवाले ) है वे भी घी के साथ स्वामे जाने से उक्त घोपों से रहित हो जाते हैं अर्थात् वायु को कम उत्पन्न करते और जल्दी पच आते हैं ।
मारवाड़ देश के बीकानेर और फलोभी आदि नगरों में सब लोग आस्थातीय ( भक्षय तृतीया अर्थात् पैशास्त्रमुदि तीम) के दिन ज्वार का खीचड़ा और उस के साथ बहुत भी स्वाकर ऊपर से इमली का प्रेर्बत पीते हैं क्योंकि भास्वातीय को नया दिन समझ कर उस दिन मे लोग इसी खुराक का खाना शुभ और लाभदायक समझते हैं, सो यद्यपि यह खुराक प्रत्यक्ष में हानिकारक ही मतीत होती है तथापि वह मछति और देश की धासीर के अनुकूल होने से भीष्म ऋतु में भी उन को पचजाती है परन्तु इस में मह एक बड़ी खराबी की वास है कि बहुत से अन कोग इस दिन को नया विन समझ कर रोगी मनुष्य को भी नही खुराक स्वाने को दे देते हैं जिस से उस बेचारे रोगी को बहुत हानि पहुँचती है इस लिये उन लोगों को उचित है कि रोगी मनुष्य को वह (उक) सुराक भूल कर भी न देवें ॥
१- इस माम्यधर्म मे बहुत बोरे व्यावश्यक भान्यों का वर्णन किया गया है, शेवयों का तथा उसे बने हुए पदों का वर्णन मिषण्ड एलाकर मारि भन्यों में देख लेना चाहिये ॥
२- इस को बीकानेर निवासी धामी ते रे ।
३-श्रीदेवी ने तो इस दिन घठेि अर्थात् य रस पिया था जिस रस को बांस नामक पपीते में वर्ष भर के भूखे को सुन दान देकर मक्षण सुख का उपार्जन किया था उसी दिन से इस प मास गतीमा हुमा