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जैनसम्प्रदामशिक्षा ||
कारक है, क्योंकि नये सन्निपात ज्मर में दूध की मनाई है परन्तु उस में भी मूंग की दाल का पानी हितकारी है, एवं बहुत दिनों के उपवास के पारने में भी यही पानी हिटकारी दे साबस मूंग वायु करता है, यदि मूग की दाल को कोरे तने पर कुछ सेक कर फिर विधिपूर्वक सिखा कर यनाया जावे तो वह बिलकुल निर्दोष होजाती है यहां तक कि पूर्व और दक्षिण के देशों में तथा किसी भी बीमारी में वह बायु नहीं करती है, यद्यपि मूंग की बहुत सी जातियां हैं परन्तु उन सब में हरे रंग का मूंग गुणकारी है ॥
अरहर — मीठी, भारी, रुचिकर, माही, ठंडी और त्रिदोषहर है, परन्तु कुछ वायु करती है |
उपयोग – रक्तविकार, भर्थ ( मस्सा), ज्वर और गोले के रोग में फायदेमन्द है । दक्षिण और पूर्व के देशों में इस की वास का बहुत उपयोग होता है और उन्हीं देशों में इस की उत्पत्ति भी होती है, अरहर की दाल और भी मिलाकर चावलों के खाने से वे वायु नहीं करते हैं, गुजरातवाले इस की दाल में कोकम और इसकी आदि की खटाई डाल कर बनाते हैं तथा कोई लोग वही और गर्म मसाला भी डालते हैं इस से बइ बायु को नहीं करती है, वाल से बनी हुई वस्तु में कथा वही और छाछ मिठा कर खाने से थूक के स्पर्धसे वो इन्द्रियाले जीव उत्पन्न होते हैं इसलिये वह अभक्ष्य है और अभक्ष्य बस्तु रोग फर्चा होती है, इस लिये द्विर्दल पदार्थों की कढ़ी और राइता मावि बनाना हो तो पहिले गोरस (दही वा छाछ आवि) को बाफ निकलने तक गर्म कर के फिर उस में बेसन आदि द्विवल अन्न मिळाना चाहिये समा दही भिड़ी भी इसी प्रकार से बना कर स्वानी चाहिये जिस से कि वह रोगकर्ता न हो ।
पाकविद्या का ज्ञान न होने से बहुत से लोग गर्म किये बिना ही वही और छाछ के साथ स्लिपड़ी तथा स्वी बड़ा वा ऐसे हैं वह उन के शरीर को बहुत हानि पहुँचाता है, इस लिये चैनामायने रोग कर्ता होने के कारण २२ बहुत बड़े अभक्ष्य बता कर उन का निषेध किया है तथा उन का नाम मतीचार सूत्र में लिख बतलाया है उसका हेतु केवल मही प्रतीत होता है कि उन का स्मरण सदा सब को बना रहे, परन्तु बड़े छोक का विषय है कि इस समय में हमारे बहुत से भिम जैन बन्धु इस बातको बिरुकुल नहीं समझते हैं ॥
उड़द - भस्यन्त पुष्ठ, मीर्यवर्धक, मधुर, भूमिकारक, मूत्रल (पेद्यान कानेवाला ), Hans (मको सोड़नेवाला ), स्वनों में दूध को बढ़ानेवाला, मांस और मेवे की उसकते है, ऐसे मन को मोरस धर्षात् दही और छ आदि के ग्राम मम किये विधवाना वैन्यमम में निषिद्ध है अर्थात् कम किया है
की हो