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बैनसम्प्रवामशिक्षा ॥
शाकों के विषय में यह भी स्मरण रखना चाहिये कि शार्को में बहुत लाल मिर्च तथा दूसरे मसाले डाल कर नहीं स्वाने चाहिये, क्योंकि अधिक लाल मिर्च और मसाले डा कर शाकों के खाने से पाचनशक्ति कम होकर दस्त, संग्रहणी, अम्लपित्त, रकपित्त और कुष्ठ आदि रकमकारजन्य रोग हो जाते हैं ।
दुग्ध वर्ग ॥
दूध का सामान्य गुण यह है कि-तून मीठा, ठडा, पिचहर, पोषण कर्ता, दख साफ ठाने वाला, वीर्य को जल्दी उत्पन्न करने वाला, गम्बुद्धि वर्धक, मैथुन शक्तिवर्धक, अवस्था को स्थिर करने वाला, ममोवर्धक ( भायु को बनाने वाला), रसायन रूप, टूटे हुए हाड़ों को मोड़ने वाम, भूखे को बालक को और बुद्ध को तृति वेनेवासा, सीमोगादि से क्षीण को तथा मस्लम वाले को हित है, एन जीर्णज्वर, अम, मूछो, मन सम्बन्धी रोग, शोप, दरस, गुल्म, उदररोग, पाण्डु, मूत्ररोग, रक्तपित, भान्ति, सूषा, दाइ, उरोरोग ( छाती के रोग, ) शुरू, आध्मान ( अफरा ), भतीसार और गर्भस्राव में दूब भत्यन्त पथ्य है, न केवळ इन्हीं में किन्तु प्राय सब ही रोगों में दूध पथ्य है, परन्तु सन्निपात, नवीन उबर, वातरफ और कुछ आदि कई एक रोगों में दूष का निषेध है, यद्यपि नवीन ज्वर में तो फोनैन पर डाक्टर लोग दूध पिया भी देते हैं परन्तु सनिपाठकी ममस्था में तो दूध के तुरूप है यह निश्चित सिद्धान्त है, एवं सुजाक ( फिरग ) रोग की तह जाम्बा में भी दूभ हानिकारक है, जो लोग दूष की सस्सी बना कर पीते हैं वह गठिया हो जाने का मूल कारण है, दूध में यह एक बड़ा ही अपूर्व गुण है कि यह अति धीम धातु की वृद्धि करता है अर्थात् जितनी जल्दी दूप से भातु की वृद्धि होती है उसनी जस्वी अन्य किसी भी वस्तु से नहीं हो सकती है, देखो । किसी ने कहा भी है कि"वीर्य वरायन मलकरण, जो मोहि पूछो कोय ॥ पय समान सिहुँ छोड़ में, अपर न भोष होम " ॥ १ ॥
गाय के दूध मे ऊपर विस्ख मनुसार सब गुण हैं परन्तु गाय के बणभेद से दूध के गुणों में भी कुछ भन्तर होता है विस का सक्षेप से वर्णन यह है कि
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फाली गाय का दूध-वायुहर्त्ता और अधिक गुणकारी है ॥
लाल गाय का दूध-वहर और पिछहर होता है ॥ सफेद गाय का दूध-कुछ कफकारी होता है ॥
तुरत की पाई हुई गाय का दूध — तीनों दोषों को उत्पन्न करवा दे ||
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मे वमन किया यहा है क्षेत्रा का परमादि