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(१५) मम में संकोष रासारे विस्तु जर जमको रिसी पुस्तकालय का सहारा मिशनाप तो थे पठन करने में मगाद मही करते उनम पाव से भद्र मन ऐसे भी होत रेमो धन सूत्रों का प्रन्पों का पार पर्म से परिचित रोनावे या पदि किसी कारण से किसी उपदेशक का शास्त्रार्य नियतो बाप दब उस सपय उस पुस्त पाप से पोप्त सापमा मिल सकती है स्वाप्याप मेपियों को दो पुस्तकालय एक स्वर्गीय भूमि प्रतीस होतो किन्तु इसका प्रवन्ध ऐस पुयाग्प विहान् पुरुषों दाग होना पारिये भो कि इस कार्य के पूर्ण पेचाहों शास्त्रोदार से नोष कर्मों की निर्मरा रफ मोघ हक भी पहुंच महता प्रवरष सिय हुमा कि पर्म अपार के लिय पुस्ताक्षप भा एक मुख्य मापन रे।
"म्यास्पान ममता में ममापशाची म्पाख्यानों का हाना भी पम प्रचार का सम्यांग योनिमा म्पामपान ओली निम स्पानों में प्रचलित है। ही है ससमें नित्य के भावागण ही काम रठा सकवेत् किम्त भो पुरुप सस स्याम से सममिारा पिसी कारण से उस स्थान