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इस प्रकार आप और आप के सुयोग्य शिष्य धर्म प्रचार करते हुए आप ने १६३७ का चतुर्मास अमृतसर में किया, चतुर्मास के पश्चात् जंघावल क्षीण हो जाने के कारण से श्रावक समुदाय की विज्ञप्ति अत्यन्त होने पर आप ने फिर बिहार नहीं किया आप के विराजमान होने से अमृतसर में अनेक धार्मिक कार्य होने लगे किन्तु, काल की ऐसी विचित्र गवि हैं कि यह महात्मा वा सामान्यात्मा को एक ही दृष्टि से देखना है किसी ना किसी निमित्त को सनमुख रख कर शीघ्र ही माणी को था घेरता है, १६३८ आषाढ़ कृष्णा १५ का आपने उपवास किया परन्तु उस उपवास का पारणा ठीक न हुआ, तव अपने अपने ज्ञान वल से आयु को निकट आया जान कर जैन सूत्रानुसार आलोचनादि क्रियाएँ करके सब जीवों से क्षमापन ( स्वमावना ) ध्यादि करके दिनके तीन बजे के अनुमान में श्री संघ के सन्मुख शास्त्रविधि के अनुसार अनशन व्रत करलिया फिर परम सुन्दर भावों के साथ मुख से भर्हन् अर्हन् का जाप करते भाषाढ़ शुक्ला द्वितीया दिन के १ बजे के अनुमान माप हुए का स्वर्गवास हो गया ।