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( १५१ ) ही है जब यह वीनों गुण उपदेशकों में ठीक हो जायें तव उपदेश की सफलता भी. शीघ्र हो जायगी समाजको उपदेशकों के चारित्र पर अवश्य ध्यान देना चाहिये । ___ पुस्तक द्विर्तीय साधन धर्म पचार का पुस्तकों द्वारा होता है बहुत से सज्जन जन 'पुस्तकों के पठन से धर्म माप्ति कर सकते हैं जैसे कि-जैन 'सूत्रों में भी लिम्बा है। सूत्र रुचि श्रुत के अध्यन करने से हो जाती है। जव विधा पूर्वक श्रतका ध्यन व खाध्याय दिया जायेगा व भी धर्म की प्राप्ति हो सकती है जैसे जब श्री देवद्धिमा श्रमण जी महाराज जी ने १८० मे सूत्रों को पत्रकार आरुिद्ध किया माज घुसी का फल हैं कि जैन मत का मस्तित्व पाया जाता है और उन्दी सूत्रों के अाधारसे। जैन प्राचार्यों ने लाखों जैन प्रन्यों को निर्माण किया जोकि आज कल प्रखर विद्वानों के मान मर्दन करने
और जैन तत्त्व को भली प्रकार से प्रदर्शित करें रहे हैं प्रतश्व देश कालानुसार पुस्तकों और धार्मिक समाचार 'परों द्वारा भी धर्म मंचार पली भांति है किन्तु पुस्तकों और समाचार पत्रों के सम्पादक पूर्ण