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( १७३ ) इस प्रकार आप और आप के सुयोग्य शिष्य धर्म प्रचार करते हुए आप ने १६३७ का चतुर्मास अमृतसर में किया, चतुर्मास के पश्चात् जंघावल क्षीण हेजाने के कारण से श्रावक समुदाय की विज्ञप्ति अत्यन्त होने पर माप ने फिर विहार नहीं किया आप के विगजमान होने से अमनसर में अनेक धार्मिक कार्य होने लगे किन्तु, काल की ऐसी विचित्र गसि है कि-यह महात्मा वा सामान्यात्मा को एक ही दृष्टि से देखता है किसी ना किसी निमित्त को सन मुख रख कर शीघ्र ही पाणी को श्रा घेरता है, १६३८ भाषाड़ कृष्णा १५ का मापने उपवास किया परन्तु उस उपवास का पारणा ठीक न हुआ, तव अपने अपने ज्ञान बल से आयु को निकट आया जान कर जैन सूत्रानुसार आलोचनादि क्रियाएँ करके
हीनों से समापन (खमावना) श्रादि करके दिनके तीन बजे के अनुमान में श्री संघ के सन्मुख शास्त्रविधि के अनुसार अनशन व्रत करलिया फिर परम सुन्दर मावों के साथ मुख से महेन् महेन् का जाप करते हुए प्रापाड़ शुक्ला द्वितीया दिन के १ बजे के अनुमान माप का स्वर्गवास होगया।