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( १७६ ) उन्होंने पांच धान्यों में क्या लाभ उठाया । उन से वृद्धि की या नहीं- तब प्रातःकाल होनेही शेठजी ने फिर एक बड़ी विशाल भोजन मंडप तय्यार करवाया उसमें नाना मझोर के भोजन तय्यार करवाए गए।
ताम्बूलार्टि पदार्थों का भी संग्रह किया गया फिर शेठजी ने अपनी जातिवाले पुरुषों को वा अपनी वधु पों' के सम्बन्धि पुरुषों को विधिपूर्वक आमंत्रित किया जब भोजनशाला में सर्वस्वनेनवर्ग इकट्ठा होगया 'ई' उनको भोजन दियागया सत्कार करने के पश्चात् उनके सामने अपनी चारों वधुओं को बुलाया गया ।
फिर शेठ जी ने पहली वधु से पांच धान्य मांगे तब बढी वधु ने अपने धान्यों के काठों से पांच धान्य साना शेठ जी के साथ में रख दियो तव शेठ जी ने उसे शपथ देकर कहा कि तुम्हें अमुक शपया है कि क्या ये वी घान्य है। सब धु ने कहा कि हे पिता बी! यह धान वातनिहीं है किन्तु मैंने अपने धान्य के कोठों से
धान्य दिये । तराशेठ जी ने सबंध विशेष सत्कार तो नहीं दिया भार नहीं कुछ कर पर