________________
( १६६ ) पूर्वक उनको दे दिया क्योंकि आपका पारवार बहुत बढ़ चुका था - सब आप दीक्षा के लिए देहली में श्रीरामबाल जी महाराज के चरणों में उपस्थित होगए किन्तु रामरत्न भी और जयन्तीदास जी यह भी दोनों आपके साथ ही दीक्षा के लिए तय्यार हुए तब आपको श्रीगुरु महाराज ने संयम वृत्ति की दुष्करता सिद्ध करके दिखखाई किन्तु मापने संयम वृति के सर्व कष्टों को सहन करना स्वीकार कर लिया क्योंकि - भाप पहिले ही ससार से विरक्त होरहे थे, और परोपकार करने के भाव उत्कटता में आए हुए थे। तब देहली निवासी लोगों ने दीक्षा महोत्सव रचदिया तब आपने १८६८ वैशास्त्र कृष्णा द्वितीया के दिन उन दोनों के साथ दीक्षा धारण की, गुरुजी के साथ ही प्रथम चतुर्मास दिल्ली में किया ।
काल की बड़ी विचित्र गति है यह किसी के भी समय को नहीं देखना अकस्मात् श्रीमान् पण्डित - श्री रामलाल जी महाराज का दीक्षा के षट्मास के पश्चात् स्वर्गवास हो गया, तब आपने शान्ति पूर्वक अपने गुरु भाइयों के साथ देश में विचरना भारंभ किया, और
1