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की प्राप्ति हो सकती है यदि विनय न किया गया तो हर एक गुण भी अवगुण हो जाता है, जैसे जल के सिंचन करने मे वृत्त प्रफुल्लित हो जाता है उसी प्रकार विनय से हर एक गुण की हो जाती है वृद्धों के पथ पर चलने से लोकापवाद भी मिट जाता है अपितु वृद्धों का मार्ग यदि मार्ग हे। वे वो, यदि वृद्धों का मार्ग धर्म से प्रतिकू है। वे तो उस के त्याग देने में किंचित् मात्र भी संकुचित भाव न करने चाहिए जैसे- बहुत से लोगों की कुल क्रम से मांस भक्षण और मदिरा पान की प्रथा चली आतीहै तो उस के त्यागने में विलम्ब न होना चाहिये, और बहुत से कुलों में वार्मिक नियम कुल क्रम से चले आते हो जैसे- “ जुआ, मांस, मदिरा, वेश्या संग, परनारी सेवन, चोरा. शिकार" इन का त्याग चला भाग है तो इन नियमों को ताड़ना न चाहिये चा-सम्बर, सामायिक, पौषध, प्रतिक्रमण, के करने की जो प्रथा चली आती हो वा उसे भग न करना चाहिये और विनय धर्म का परित्याग भी न करना चाहिये यही “वृद्धानुग" है । १८ - विनीत- विनयवान् होना चाहिये - विनय से विगडे हुए फाम सुधर जाते हैं विनय धर्म का मूल 'है
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