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पिण्डनियुक्ति : एक पर्यवेक्षण
व्याख्या में मलयगिरि ने इस प्रकार का उल्लेख नहीं किया है अतः यह संभावना की जा सकती है कि मलयगिरि ने जो वृद्ध-व्याख्या, मूलटीका या वृद्ध-सम्प्रदाय का उल्लेख किया, वह हरिभद्र कृत शिष्यहिता टीका के लिए ही किया होगा। फिर भी इस विषय में और अधिक शोध की आवश्यकता है। पिण्डनियुक्ति भाष्य
पिण्डनियुक्ति पर प्रथम संक्षिप्त व्याख्या भाष्य है। प्रकाशित टीका में भाष्य की संख्या मात्र ३७ है लेकिन मूलतः भाष्य गाथाएं अधिक होनी चाहिए। संपादन में इसका निर्देश टिप्पण में यत्र-तत्र कर दिया गया है।
नियुक्ति पर भाष्य लिखा गया अत: यह तो निश्चित है कि इन दोनों के कर्ता दो आचार्य रहे होंगे। आचार्य मलयगिरि ने अनेक स्थलों पर 'आह भाष्यकार: ' आदि का उल्लेख किया है तथा भाष्य-गाथाओं की व्याख्या भी की है अतः भाष्यकार आचार्य मलयगिरि से पूर्व हुए, यह भी निश्चित है। पिण्डनियुक्ति के भाष्यकार कौन थे, इस बारे में निश्चयपूर्वक कुछ भी नहीं कहा जा सकता। वर्तमान में भाष्यकार के रूप में दो नाम प्रसिद्ध हैं-संघदासगणी एवं जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण। निशीथ भाष्य में पिण्डनियुक्ति की गाथा के बाद उसकी व्याख्या वाली गाथाओं के लिए चूर्णिकार ने 'एतीए इमा दो वक्खाणगाहाओ' का उल्लेख किया है। ऐसा उल्लेख और भी स्थानों पर मिलता है। इससे एक संभावना यह की जा सकती है कि निशीथ भाष्यकार ने ही इसकी भाष्यगाथाओं की रचना की हो, फिर भी इस संदर्भ में अभी और भी अधिक खोज एवं विमर्श करने की आवश्यकता है।
लघुभाष्य को देखकर एक संभावना यह भी की जा सकती है कि बीच के किसी आचार्य ने यह भाष्य रचा हो। मलयगिरीया टीका
वर्तमान में पिण्डनियुक्ति पर सबसे समृद्ध टीका आचार्य मलयगिरि की है। यद्यपि उनके जीवन के बारे में इतिहास में विशेष जानकारी नहीं मिलती। ये आचार्य हेमचन्द्र के समकालीन थे अतः इनका अस्तित्व बारहवीं शताब्दी के आसपास सिद्ध होता है। आचार्य मलयगिरि ने लगभग २५ ग्रंथों पर विस्तृत टीकाएं लिखी हैं।
टीकाकार के बाहुश्रुत्य को इस बात से जाना जा सकता है कि उन्होंने अन्य ग्रंथों का उल्लेख भी किया है, जैसे-एतच्चान्यत्र धर्मसंग्रहणिटीकादौ विभावितमिति नेह भूयो विभाव्यते, ग्रन्थगौरवभयात्। अनेक स्थलों पर 'अन्ये' या 'केचिदाहुः' का उल्लेख करके अन्य मान्यताओं का उल्लेख भी किया है, जैसे
१. मवृ प. २३।
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