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शब्द-राशि । उसके साथ ' स्यात्' जोड़ दो, शब्द-प्रयोग सम्यक् हो जाएगा । विचार यथार्थ हो जाएगा । 'स्यात् ' को निकाल दो, शब्दप्रयोग विरोधाभास से उलझ जाएगा और अर्थ लुप्त हो जाएगा।
भगवान् महावीर मुक्ति-मार्ग के द्रष्टा थे। उन्होंने कहा-मुक्ति का मार्ग सम्यग्-दर्शन है । दर्शन सम्यक् होगा तो ज्ञान सम्यग् होगा । सम्यक्-ज्ञान एक दिन आचारका रूप ले लेगा।
भगवान् महावीर आत्मवादी थे। उन्होंने कहा-जो तीर्थिक कहते हैं-हमारे उपस्थान में आओ तुम्हारी मुक्ति हो जाएगी अन्यथा नहीं होगी, वे सत्य से दूर हैं । मुक्ति किसी संस्थान का सदस्य बनने मात्र से नहीं, किन्तु कषायत्याग से होती है । वह किसी भी वेष में हो सकती है, यदि आत्मा कयाय-मुक्त हो और वह किसी भी वेष में नहीं होती, यदि आत्मा कषाय-युक्त हो । भगवान् के सामने चारों ओर आत्मा ही आत्मा का साम्राज्य था । आत्मा से भिन्न उनका कोई सम्प्रदाय नहीं था । वे ही महावीर मेरे आराध्य हैं । क्योंकि वे
(१) आत्मोदयी हैं। (२) अनन्तचक्षु हैं ।
स्याद्वादी हैं । (४) मुक्ति के उपदेष्टा है। (५) आत्म-सम्प्रदाय के उन्नायक हैं।
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