________________
२६
सवसनसंग्रहे
ही शंका रहती है। अपनी क्रिया के व्याघात से व्यभिचार की शंका नहीं उठती । इस विधि को पाश्चात्त्य तर्कशास्त्र में Reductio ad absurdum ( व्यावहारिक असंगति दिखाना ) कहते हैं जिसमें विरोधी वाक्य को मिथ्या सिद्ध कर देते हैं। उदयनाचार्य की कुसुमाञ्जलि में निम्नलिखित श्लोक है
शङ्का चेदनुमास्त्येव न चेच्छङ्का ततस्तराम् ।
व्याघाताबधिराशङ्का तर्कः शङ्कावधिर्मतः ॥ ( न्या० कु० ३७ ) ( अनुमा = अनुमान ) । यह अनुमान को सिद्ध करने वाली कारिका है जिसमें अनुमान से व्यभिचार की शंका का सम्बन्ध बतलाया गया है। शंका हो या नहीं, अनुमान दोनों स्थितियों में हैं । यदि शंका (= देशान्तर या कालान्तर में साध्य-साधन के बीच उपाधि या व्यभिचार होने की आशंका ) रहे तो भी अनुमान सिद्ध होता है क्योंकि अनुमान-प्रमाण से ही उपाधि या व्यभिचार का ज्ञान होता है ( भले ही इसके लिए दूसरे अनुमान की आवश्यकता है, पर वह है तो अनुमान ही न ? )। अगर शंका नहीं हो तब तो और भी आनन्द, क्योंकि अब तो शंका दूर करने की भी जरूरत नहीं है । शंका की अवधि तर्क को ही माना गया है। तर्क शंका का निवर्तक है । इसे हम ऊपर देख चुके हैं। लेकिन तर्क में भी व्याप्ति की आवश्यकता पड़ेगी और फिर दूसरा तर्क खोजना पड़ेगा जिससे अनवस्था-दोष ( Argumentum ad Infinitum ) उत्पन्न हो जायगा। इसलिए व्याघात ( व्यावहारिक असंगति ) का आश्रय लेना पड़ेगा। तर्कमूल व्याप्ति में जब अपनी क्रिया का व्याघात या असंगति आवेगी तब व्यभिचार-शंका समाप्त हो जायगी-पुनः दूसरे तर्क की आवश्यकता नहीं । इसलिए शंका की अवधि व्याघात है । शंका तभी तक है जब तक व्याघात नहीं मिलता।
( ३. तदुत्पत्ति से अविनाभाव का ज्ञान-पञ्चकारिणी) तस्मात्तदुत्पत्तिनिश्चयेनाविनाभावो निश्चीयते । तदुत्पत्तिनिश्चयश्च कार्यहेत्वोः प्रत्यक्षोपलम्भानुपलम्भपञ्चकनिबन्धनः । कार्यस्योत्पत्तेः प्रागनुपलम्भः, कारणोपलम्भे सति उपलम्भः, उपलब्धस्य पश्चात्कारणानुपलम्भावनुपलम्भः इति पञ्चकारण्या धूमधूमध्वजयोः कार्यकारणभावो निश्चीयते ॥ - इसलिए तदुत्पत्ति ( कार्य-कारण-सम्बन्ध ) के निश्चय के द्वारा अविनाभाव ( व्याप्ति) का निश्चय होता है । तदुत्पत्ति का निश्चय कार्य और हेतु ( कारण ) के प्रत्यक्ष उपलम्भ (प्राप्ति ) और अनुपलम्भ ( अप्राप्ति ) रूपी पाँच [ अवयवों ] पर निर्भर करता है । ( दो बार उपलम्भ और तीन बार अनुपलम्भ ) । धूम और धूमध्वज ( अग्नि ) में कार्यकारण-सम्बन्ध इन पाँच कारणों की समन्विति से निश्चित किया जाता है-(१) उत्पत्ति