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देव हैं, यह रुकों का मत है । और ऐतिहासिक कहते हैं कि ये प्रथम युग के देवता हैं । तथा रश्मी के नामों में भी " साध्याः " नाम रश्मियों का है। अतः रश्मी प्राण श्रादि का नाम भी साध्य देव है ।
सर्वाशुकमणी में महर्षि कात्यायन ने लिखा है कि
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एकै महानात्मा देवता, स सूर्य - इत्याचक्षते, सहि सर्व भूतात्मा । तदुक्तम् ऋषिखा सूर्यात्मा जगतस्तस्थुषचेति । सद् विभूतयो अन्याः देवताः तदप्येतद् ऋचोकम् 1 इन्द्रं मित्रं वरुणमनिमाहुरिति ॥ २० ॥
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अर्थात् एक ही महानात्मा देवता है, वह सूर्य है, यही ऋषि ने कहा है कि इन सबका सूर्य ही आत्मा है। अन्य सब देव इस सूर्यकी ही विभूतियाँ हैं, जैसा कि वेद ने कहा है। अग्निमित्र. व आदि अमि को ही कहते हैं ।
तथा च ऐतरेयोपनिषद भाष्य में श्रीशंकराचार्यजी लिखते है कि"यथा कर्म संबन्धिनः पुरुषस्य सूर्यात्मनः स्थावर जंगपादि सर्वप्राययात्मत्वमुक्तं ब्राह्मणेन मन्त्रेण च (सूर्यात्मा, ऋ० १ । ११५ । १ ) इत्यादिना तथैव एष ब्रह्मेष इन्द्रः (३ । १ । ३ ) इत्याद्युपक्रम्य सर्व प्राण्यात्मत्वम्, 'बच्चस्थावरं सर्वं सत्प्रज्ञा नेत्रम् (३|१|३) इत्युष से हरिष्यति"
अर्थ-जिस प्रकार ब्राह्म ग्रन्थ और मन्त्र में. (सूर्यात्मा के आत्मभाव को प्राप्त हुए जगतस्तस्थुषा ) इस वाक्य द्वारा ( सूर्य मंडलान्त वर्ती) कर्म सम्बन्धी पुरुष को स्थावर जंगमा सम्पूर्ण प्राणियों का आत्मा बतलाया है. उसी प्रकार श्रुति