________________
४४
सूत्र ही है जो स्थानान्तरित होकर भारत आये थे और अपनी कमर पर ऊनी 'कुश्ती' सद्र नाम के वस्त्र पर दधिते थे। पारसियों की 'कुश्ती के दोनों छोर सर्प की मुखाकृति के होते हैं जिसमें बराबर की दूरी रखते हुए गाँठें लगायी जाती है दे० एम० एम० मुरजबान की 'पारसीज इन इण्डिया' प्रथम जित्य पृष्ठ ९३ । प्रतीत होता है कि सूर्य की यह पूजा यहाँ पर ईरान से आयी अथवा पारसियों की दैनिक चर्या से गृहीत हुई । वराहमिहिर की बृहत्संहिता (५९ १९) में लिखा है कि सूर्य के पुजारी या तो मग लोग हों अथवा शाकद्वीपीय ब्राह्मण दे० इण्डियन एण्टिविटी, जिल्द आठवीं ०३२८ तथा कृष्णदास मिश्र का 'मग व्यक्ति' । अभ्युत्थान- किसी अतिथि के आगमन पर संमानार्थ उठने की क्रिया
अलमलमभ्युत्थानेन, ननु सर्वस्याभ्यागतो गुरुरिति भवानेवास्माकं पूज्यः । ( नागानन्द ) [आप न उठिए । अभ्यागत निश्चय ही सबका गुरु होता है, आप ही हम लोगों के पूज्य हैं ।]
अमङ्गल -- जिससे शुभ नहीं होता । बहुत से अशुभसूचक पदार्थ माङ्गलिक माने जाते हैं। विवाह आदि उत्सव, यात्रा तथा किसी भी कार्यारम्भ के समय अमङ्गल को बचाया जाता है ।
अमरकण्टक- - मध्य प्रदेश का एक पवित्र और प्रसिद्ध तीर्थ स्थान इसका शाब्दिक अर्थ है (अमर + कण्टक) 'देवताओं का शिखर' । यह विलासपुर जिले में मेकल की श्रृंखला पर स्थित है। यहाँ पर नर्मदा का उद्गम है, जिसके कारण नर्मदा 'मेकलसुता' कहलाती है । प्रतिवर्ष सहस्रों तीर्थयात्री अमरकण्टक से चलकर नर्मदा के किनारे-किनारे संभात की खाड़ी तक परिक्रमा करने जाते हैं जहाँ नर्मदा समुद्र में मिलती है।
अमरकण्टक मध्यभारत का जलविभाजक है । यहाँ से सोन उत्तरपूर्व की ओर, महानदी पूर्व की ओर और नर्मदा पश्चिम की ओर बहती है। आज भी अमरकण्टक जनाकीर्ण प्रदेशों से अलग एकान्त में स्थित है। अतः इसकी पवित्रता अधिक सुरक्षित है। कुछ विद्वानों के अनुसार मेघदूत (१. १७) का आम्रकूट यही है। मार्कण्डेय पुराण (अ० १७) में इसको सोम पर्वत अथवा सुरथाद्रि
Jain Education International
अमंगल अमरलोक खण्डधाम
कहा गया है। मत्स्यपुराण (२२-२८) कुरुक्षेत्र से भी अधिक पवित्रता अमरकण्टक को प्रदान करता है । दे० 'नर्मदा' |
अमरवास — सिक्खों के दस गुरुओं में इनका तीसरा क्रम है। ये गुरु अङ्गद के पश्चात् गद्दी पर बैठे इन्होंने बहुत से । भजन लिखे हैं जो 'गुरुग्रन्थ साहब' में संगृहीत है। अमरनाथ-कश्मीर का प्रसिद्ध शैव तीर्थ, जो हिमालय की भैरव घाटी श्रृंखला में स्थित है। समुद्रस्तर से १६००० फुट की ऊंचाई पर पर्वत में यहां लगभग १६ फुट लम्बी, २५ से ३० फुट चौड़ी और १५ फुट ऊँची प्राकृतिक गुफा है । उसमें हिम के प्राकृतिक पीठ पर हिमनिर्मित प्राकृतिक शिवलिङ्ग है। यह धारणा सच नहीं है कि यह शिवलिङ्ग अमावस्या को नहीं रहता और शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से वनता हुआ पूर्णिमा को पूर्ण हो जाता है तथा कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से क्रमशः घटता है। पूर्णिमा से भिन्न तिथियों में यात्रा करके इसे देख लिया गया है कि ऐसी कोई बात नहीं है । हिमनिर्मित शिवलिङ्ग जाड़ों में स्वतः बनता है और बहुत मन्दगति से घटता है परन्तु कभी पूर्ण लुप्त नहीं होता । अमरनाथ गुफा में एक गणेशपीठ तथा एक पार्वतीपीठ हिम से बनता है । अवश्य ही अमरनाथ की एक अद्भुत विशेषता है कि यह हिमलिङ्ग तथा पीठ ठोस पक्की बरफ का होता है, जबकि गुफा के बाहर मीलों तक सर्व कच्ची बरफ मिलती है।
अमरनाथ गुफा से नीचे सिन्धु की एक सहायक नदी अमरगंगा का प्रवाह है। यात्री इसमें स्नान करके गुफा में जाते हैं। सवारी के घोड़े अधिकतर एक या आध मील दूर ही रुक जाते हैं । अमरगङ्गा से लगभग दो फर्लांग ऊपर गुफा में जाना पड़ता है। गुफा में जहाँ-तहाँ बूंदबूंद करके जल टपकता है। कहा जाता है कि गुफा के ऊपर पर्वत पर रामकुण्ड हैं और उसी का जल गुफा में टपकता है। गुफा के पास एक स्थान से सफेद भस्म-जैसी मिट्टी निकलती है, जिसे यात्री प्रसाद स्वरूप लाते हैं। गुफा में वन्य कबूतर भी दिखाई देते हैं। यदि वर्षान होती हो, बादल न हों, धूप निकली हो तो गुफा में शीत का कोई भी अनुभव नहीं होता । प्रत्येक दशा में इस गुफा में यात्री अनिर्वचनीय अद्भुत सात्विकता तथा शान्ति का अनुभव करता है।
अमरलोक खण्डधाम - स्वामी चरणदास कृत 'अमरलोक
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org