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प्रमेयचन्द्रिका टीका २०२५ उ.६ लू०१ प्रज्ञापनाद्वारनिरूपणम्
टीका-'रायगिहे जाव एवं बयासी' रामगृहे यावद् एवमवादीत् अत्र यावत्पदेन परिषद् निर्गता, तत्र भगवता धर्मोपदेशः कृतः परिषत् प्रतिगता तदनु पाञ्जलिपुटो गौतम एतदन्तसन्दर्भस्य ग्रहणं भवति किमवादीत् गौतम स्तत्राह-'कइ णे' इत्यादि । 'कइ णं भंते ! णियंठा पानता' कति खलु भदन्त ! निर्यन्याः प्रज्ञप्ताः ग्रन्यात् परिग्रहात् वाह्यादाभ्यन्तराच्च निर्गताः ये ते निर्ग्रन्थाः साधवः वाह्याभ्यन्तरपरिग्रहरहितत्वमेव निग्रन्थत्वमित्यर्थः एतादृशाः निम्रन्थाः कति प्रकारका भवन्तीति प्रश्नः, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि । 'गोयमा' हे गौतम ! 'पंच णियंठा पन्नता' पश्च निर्ग्रन्थाः प्रज्ञप्ता, मकारभेदमेव दर्शयति,
___अब सूत्रकार सर्व प्रथम प्रज्ञापना द्वार का कथन करते हैं'रायगिहे जाव एवं क्याली' इत्यादि सू० १॥
टीकार्थ--'रायगिहे जाव एवं बयाली' राजगृह नगर में (भगवान् गौतम ने) यावत् मभुश्री से इस प्रकार पूछा यहां यावत् पद से यह पाठ संगृहीत हुआ है-'परिषदा निकली भगवान् ने धर्मोपदेश दिया धर्मो. पदेश सुनकर परिषदा विसर्जित हो गई। इसके बाद दोनों हाथ जोडकर गौतमस्वामी बोले हे भदन्त ! निर्ग्रन्थ कितने प्रकार के कहे गये हैं ? ग्रन्थ नाम परिग्रह का है । यह परिग्रह बाय और आभ्यन्तर के भेद से दो प्रकार का होता है बाय आभ्यन्तर परिग्रह ले जो रहित होते हैं वे निग्रन्थ हैं क्यों कि बाह्य और आभ्यन्तर परिग्रह से रहित होना ही तो निर्ग्रन्यता है । इसके उत्तर में प्रमुश्री कहते हैं-'गोयमा! पंच णियंठा पन्नता हे गौतन ! निर्गन्ध पांच प्रकार के होते हैं । 'तं जहा' जैसे
वे सूत्रधार सीथी ५७i प्रज्ञायना दानु ४थन ४२ छ-'रायगिहे जाव एवं वयात्री'
टा-'रायगिहे जाव एवं वयासी' २०४७ नगरमा सवाननु सभव. સરણ થયું પરિષદ્ ભગવનને વંદના કરવા આવી ભગવાને તેઓને ધર્મદેશના આપી ધર્મદેશના સાંભળીને પરિષદુ પોતપોતાના સ્થાને પાછી ગઈ તે પછી બને હાથ જોડીને ઘણું જ વિનય સાથે ગૌતમસ્વામીએ પ્રભુને આ પ્રમાણે પૂછયું–હે ભગવન નિર્ચ કેટલા પ્રકારના કહ્યા છે ? ગ્રન્થનામ પરિગ્રહને છે આ પરિગ્રહ બાહ્ય અને આભ્યારના ભેદથી બે પ્રકારનો હોય છે. બાહ્ય અને આભ્યન્તર પરિગ્રહથી જે રહિત હોય છે, તે નિર્ગથ . કેમકેબાહ્ય અને આભ્યન્તર પરિગ્રહ રહિત થવું એજ નિર્ચ થપણું છે આ प्रश्न उत्तरमा प्रभु 8 छ -'गोयमा पंच णियंठा पन्नत्ता' हे गौतम !