________________
१८०
भगवतीसूत्र भवेत् । पुनः प्रश्नयति 'जइ सलेस्से होज्जा से भंते ! कइसु लेस्सा होज्जा' यदि स्नातकः सलेश्यो भवेत् स खलु भदन्त ! बालिपु लेश्यासु भवेत् भगानाह'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'एगाए परमसुकलेस्साए होज्जा' एक स्यां एमशुक्ल लेश्यारी भवेत् शुक्लध्यानतृतीयभेदावमारे या लेश्या सा परमशुक्ललेश्या अन्यसमयेतु शुक्लैव सापि इतरजीवशुक्ललेशपापेक्षया स्नातकस्य परमशुक्ला इति ।।०९॥
विशतितम परिणामबारमाह-"पुलाएवं अंते' इत्यादि, मूलम्-पुलाए णं भंते ! किं बड्माणपरिणाम होज्जा हीयमाणपरिणामे होज्जा अवट्टियपरिणामे होज्जा ? गोयमा ! बड्डमाणपरिणामे वा होज्जा हीयमाणपरिणाने का होज्जा अवट्रियपरिणामे वा होज्जा। एवं जाव कसायकुसीले। णियंठे थे पुच्छा गोयमावलाणपरिणाम होज्जा णो हीयमाणपरिणाम होज्जा अवडियपरिणामे वा होज्जा एवं सिणाए वि। पुलाए होज्जा' हे गौतम ! बह स्नातक लेश्यावाला भी होता है और विनालेश्या का भी होता है । 'जह सलेसे होज्जा से णं भंते ! कासु लेस्सास्लु होज्जा' हे अदन्त ! यदि वह सलेश्य होता है तो किस लेश्यायाला होता है ? उसर में प्रभुश्री कहते हैं-'गोयमा! एगाए परम सुकलेलाए होज्जा' हे गौतम! वह एक परम शुक्ललेश्यावाला होता है शुक्लध्यान के तृतीय भेद के समय जो लेश्या होती है वह परमशुक्ललेश्या कहलाती है । इसके सिवाय अन्य समय में शुक्ललेश्या ही होती है। परन्तु वह भी अन्य जीवों की शुक्ललेश्या की अपेक्षा स्नातक के परमशुक्ल कही गई है ॥सू०९॥
लेण्याद्वार का कथन लयाप्त मन वेश्या विनाना ५५ डाय छे. 'जइ सलेस्से होज्जा से णं भसे ! कइसु लेस्सासु होज्जा' ७ सागवन् न त वेश्या सहित हाय थे, लेश्यावाणा खाय छ १ उत्तरमा प्रसुश्री ४९ छ -'गोयमा ! एगाए परमसुकलेस्साए होज्जा'
ગૌતમ! તે એક પરમ શુકલ લેશ્યાવાળા હોય છે. શુકલધ્યાનના ત્રીજા ભેદના સમયે જે વેશ્યા હોય છે, તે પરમ શુકલેશ્યા કહેવાય છે તે સિવાય અન્ય સમયમાં શુકલ લેશ્યા જ હોય છે, પરંતુ તે પણ અન્ય જીની લેશ્યાની અપેક્ષાએ સ્નાતકને પરમ શુકલ લેફ્સા કહી છે. એ રીતે આ લેશ્યાદ્ધિારનું કથન કરેલ છે. સૂત્રો