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प्रमैयचन्द्रिका टीका श०२५ उ.७ सू०९ प्रायश्चित्तप्रकारनिरूपणम् पूर्वार्द्ध त्रिंशत्तमं सूत्रं द्रष्टव्यम् 'जहा उबवाइए' इत्यनेन इदं मूचितं भवति, 'दया. भिग्गहचरए, खेत्तामिग्गहचरए, कालाभिग्गहचरए, भात्राभिग्गहचरए' इत्यादि, द्रव्याभिग्रहचरका, क्षेत्राभिग्रहचरकः कालाभिग्रहचरका, भावाभिग्रहचरक इत्यादि । 'मुद्धेसणिए' शुद्धपणा शङ्कितादि दोपपरिहाराद् एतादृश शुद्धपणावान् शुद्धैषणिकः 'सखादत्तिए' संख्यादतिका-एकादिदत्त्या मिक्षाकरणम् । 'से तं भिक्खायरिया' सैपा भिक्षाचर्येति । 'से किं तं रसपरिच्चाए' अथ कोऽसौ रसपरियह वर्णन देखलेना चाहिये । आहारादिका पात्र में जो एक बार प्रक्षेप है उसका नाम दत्ति है, अभिग्रह में वृत्ति की संख्या का नियम होता है 'जहा उववाइए' इस पद से सूत्रकार ने यह सूचित किया है। 'दव्याभिग्गहचरए, खेत्ताभिग्गहचरए कालाभिग्गहचरए' भावाभिग्गहचरए' इत्यादि जो शुद्ध एषणाबाला होता है वह शुद्वैपणिक है। एषणा की शुद्धि शकिन आदि दोषों के परिहार से होती है। 'संखादत्तिए' एक आदि दत्ति से भिक्षा करना इसका नाम संख्या. दत्ति है। इस संख्यादत्ति वाला जो होता है वह संख्यादत्तिक है। 'सेत्तं 'भिक्खायरिया' इस प्रकार से यह भिक्षाचर्या के सम्बन्ध में कथन है। तात्पर्य कहने का यही है कि द्रव्याभिग्रह चर भिक्षा में अमुक चीजों का ही ग्रहण करने का नियम होता है। क्षेत्राभिग्रहचर अमुक क्षेत्र के अभिग्रहपूर्वक भिक्षा करना होता है । इत्यादि सब वर्णन इसका औपपातिक सूत्र में शुद्ध निर्दोष भिक्षा करना, दत्ति की संख्या करना इस प्रकरण तक किया गया है। આહાર વિગેરેને પાત્રમાં એકવાર નાખવામાં આવે છે, તેને દક્તિ કહેવાય छे, मसिडमा तिनी सच्यानो नियम ३ाय छे. 'जहा उववाइए' मा पथा सूत्रारे सूचित इयु छ -'खेत्ताभिग्गहचरए कालाभिग्गहचरए भावाभिग्गहचरए' त्याला शुद्ध मेषावा य छ, तमे। शुध्धेषण वाय. मेष। विगैरेनी शुद्धि शतिविगेरे होषोना परिक्षारथी थाय छे 'संखादत्तिए' એક વિગેરે દત્તિથી ભિક્ષા કરવી તેનું નામ સખાદત્તિ છે આ સ ખ્યાત્તિपाणाडाय छ, त सध्याति पाय छे. 'से तं भिक्खायरिया' मा રીતે આ ભિક્ષાચર્યાના સ બ ધમાં કથન કરેલ છે. આ કથનનું તાત્પર્ય એ છે કે-દ્રવ્યાભિગ્રહચર ભિક્ષામાં અમુક ચીજોને જ ગ્રહણ કરવાનો નિયમ હોય છે. અમુક ક્ષેત્રના અભિગ્રહપૂર્વક ભિક્ષા કરવાનું હોય છે, વિગેરે સઘળું વર્ણન
પપાતિક સૂત્રમાં “શુદ્ધ નિર્દોષ ભિક્ષા કરવી દત્તિની સંખ્યા કરવી આ મકરણ સુધી કહેલ છે. તે સઘળું કથન અહિયાં પણ તે પ્રમાણે જ સમજી લેવું.