Book Title: Bhagwati Sutra Part 16
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 694
________________ ६७० भगवतीसरे भङ्गा यथायथमुदाहरणीयाः । 'सेसं तहेब जाव वेमाणियाणं' शेप तथैव याबद्वैमानिकानाम् , मनुष्यान् विहाय शेषाणां सर्वेषां वैमानिकान्तदण्डकानां सर्वपदेषु तथैव नारकवदेव प्रथम द्वितीयौ भनौ वक्तव्यो इति । 'दरिसणावरणिज्ज पि एवं चेव निरवसेस' दर्शनावरणीयमपि एवमेव निरवशेपं यथा ज्ञानावरणीयेन कर्मणा कर्मवन्धवक्तव्यता कथिता तथैव दर्शनावरणीयेन दण्डका भणितव्याः 'वेयणिज्जे सव्यस्थ वि पदमवितिया भंगा जाव वेगाणियाण' वेदनीये सर्वत्रापि प्रथमद्वितीयो भङ्गो अवधनात् वध्नाति मन्त्स्यति १, अवधनात् वघ्नाति न भन्स्यतिर इन्याकारको द्वौ भगौ ज्ञातव्यो एयमेव वैमानिकपर्यन्तेऽपि पथमद्वितीयों भद्गी वेदनीयकर्मविपये ज्ञातव्याविति । 'णवरं मणुम्सेसु अस्से केवली अयोगी नत्यि' सयोगी, मनोयोगी आदि तीन आकारोपयोगयुक्त, और अनाकारोपयुक्त इन में चतुर्थ भंग को छोड़कर आदि के तीन भंग कहना चाहिये। _ 'सेसं तहेब जाव वेमाणियाणं' मनुप्यों के सिवाय सभी दण्डको का यावत् वैमानिक दंडक तक का कथन नरयिकों के समान करना चाहिये। अर्थात् इन सभी दंडको में भी नैरथिकों के जैसे प्रथम और द्वितीय दो भंग ही कहना चाहिये। 'दरिमणावरणिज्ज पि एवं चेव निरक्सेसं' जिस रीति से ज्ञानावरणीय कर्म के साथ बन्ध को वक्तव्यता कही गई है उसी रीति से दर्शनावरणीय कर्म के साथ भी बन्ध की वक्तव्यता कहनी चाहिये,-'वेयणिज्जे सम्वत्य वि पढमपितिया भंगा जाच वेमाणियाणं' वेदनीय कर्म में भी सर्वत्र पदों में प्रथम द्वितीय भंग वैमानिक तक कहना चाहिये, 'नवर मणुस्सेसु નાસંરોગી અને અનાકારપગવાળામાં ચોથા ભંગને છેડીને પહેલે, બીજે અને ત્રીજો એ ત્રણ ભંગો કહેવા જોઈએ. _ 'सेंस तहेव जाव वेमाणियाणं' भनुष्याना शिवाय मानु यावत् વૈમાનિક દંડક સુધીનું કથન નવિકેના કથન પ્રમાણે કહેવું જોઈએ અર્થાત્ આ अधामा परखा गने मील मे मे मी४ ४ पान ह्या छ. 'दरिसणावरणिज्जपि एवं चेव निरवसेसं' के प्रमाणे ज्ञानापणीय भनी साथ બંધ સંબંધી કથન કર્યું છે, એ જ પ્રમાણે દર્શનાવરણીય કર્મની સાથે પણ બંધ સંબંધી કથન કહેવું જોઈએ અર્થાત દર્શનાવરણીય કર્મ સાથે પણ । ४ा नसे. 'वेयणिज्जे खव्वत्यवि पढमविति या भंगा जाव वेमाणि. ચા વેદનીય કર્મમાં પણ બધાજ પદેમાં માનિકે સુધી પહેલે અને બીજે समे गो ४९ ने ये 'नवर' मणुस्सेसु अलेस्से केवली अयोगी नत्थि'

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