Book Title: Bhagwati Sutra Part 16
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 696
________________ ६७२ भगवतीसूत्रे चतुर्भङ्गको मोहनीय कर्मबन्धविषये प्रनः पृच्छा संगृह्यते । भगवानाह - 'गोयमा' इत्यादि, 'गोमा' हे गौतम! 'जहेब पाच सहेच निरवसेसं जाव पेमाणिए' यथेत्र पापं तथैव निरवशेषं यावद्वैमानिकः, पापकर्मबन्धविषये येन रूपेण कथितं तेनैव रूपेण निरवशेषं सर्वमपि मोहनीय कर्मबन्धविषयेऽपि वैमानिकपर्यन्तस्य वक्तव्यम् । अयं भावः- मनुष्याणां विंशतिपदेषु चरमभङ्गरहिता आधाखयो भङ्गा वक्तव्या मनुष्याणां शेपपदेषु, तथा शेपत्रयोविंशतिदण्डकेषु च द्वौ इति । आयुर्दण्ड के 'अचरिमेण भंते । नेरइए' अचरमः खल भदन्त ! नैरयिकः 'आउयं कम्मं किं चंधी पुच्छा' आयुकं कर्म किम् अवघ्नात्, चन्नाति मन्त्स्यति १, वर्तमान में वह क्या उसे नहीं बांधता है और भविष्यत् काल में भी क्या वह उसे नहीं बांधेगा ? इस प्रकार का यह चार भंगोवाला मोहनीय कर्मबन्ध के विषय में गौतमस्वामीने प्रश्न किया है। इस प्रश्न के उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं - 'गोमा ! जहेव पावं तहेव निरवसेसं जाव माणिए' हे गौतम! जैसा पापकर्म के सम्बन्ध में कहा जा चुका हैं वैसा ही समस्त कथन यहाँ यावत् वैमानिक तक कहना चाहिये, तात्पर्य यही है कि मोहनीय कर्म के बन्ध के संबंध में भी पापकर्म के बंध के जैसे मनुष्यों में भी बीस पदों में तो आदि के तीन भंग कहना चाहिये और शेष पदों में, तथा तेवींस दंडको में आदि के दो भंग कहने चाहिये । 'अचरिमेण भरते ! नेरहए आउयं कस्मं किं बधी पुच्छा' हे भदन्त ! जो अचरम नैरयिक होता है क्या उसके द्वारा पूर्वकाल में आयुष कर्म का घन्ध किया गया होता है ? वर्तमान में वह क्या आयुष कर्म का बन्ध करता है ? भविष्यत् काल में भी क्या वह आयुष कर्म का बंध કૅના બંધના સબધમાં ગૌતમસ્વામીએ પ્રભુશ્રીને પૂછ્યા છે આ પ્રશ્નના उत्तरमां अनुश्री गौतम स्वामीने हे छे - 'गोयमा ! जहेव पाव व निरवसेस जाव वैमाणिए' हे गौतम! याचना गंधना समंधमा ? પ્રમાણુનું કથન કરવામાં આવ્યું છે એજ પ્રમાણેનું કથન અહિયાં યાવત વૈમાનિક સુધી કહેવુ જોઈ એ કહેવાનું તાત્પ એ છે કે-મૈાહનીય કમના ખધ સ મ་ધમાં પણ પાપકમ બ ધના કથન પ્રમાણે મનુષ્યામા પણ વીસ પદેોમાં તે આદિના ત્રણ ભંગા કહેવા જોઇએ અને બાકીના પદોમાં તથા તેવીસ દડકામા આદિના मे भगवा हो. 'अचरिमे णं भंते । नेरइर आउयं कम्म कि बंधी पुच्छा' હૈ ભગવત્ જે અચરમ નૈરિયેક ડાય છે, તેણે ભૂતકાળમા આયુકને મધ કર્યો હાય છે? વર્તમાન કાળમાં તે આચુકમના અંધ કરે ? અને ભવિષ્ય કાળમાં પણ તે તેને ખધ કરશે ? ઈત્યાદિ ક્રમથી ગૌતમસ્વામી એ અહિયાં

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