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प्रमेय चन्द्रिका टीका २०२५ उ.७ ०९ प्रायश्चित्तप्रकारनिरूपणम्
किं तं इंदियपडिलीणमा' अथ का सा इन्द्रियपतिस लीनतेति घश्नः, उत्तरमाह'इंदिप डिकीणया पंचtिer पन्नता' इन्द्रिय प्रतिसंलीनता पञ्चविधा - पञ्च प्रकारा प्राप्त 'वजन' वगा - 'सोईदिवविलयप्यधारणिरोहो वा' श्रोत्रेन्द्रियारनिरोध वा श्रोत्रेन्द्रियस्य यः विषयेषु इष्टानिष्टनन्दस्वरूपेषु प्रचारः - श्रवपालमा या प्रवृत्तिस्य यो निरोधो - निषेधः स श्रोत्रेन्द्रियप्रचारनिरोधः, स्था-- सोविविनयपत्ते वा अत्थेषु रामदोस विणिभ्यो' थोत्रे अर्थेषु राजपविनिग्रहः, श्रोत्रेन्द्रियविषयेषु प्राप्तेषु वाडः र्थेषु इष्टानि कररूपेषु रामद्वेषयो निरोधः । ' चक्सिंदिपदिय प्यारगिरोहोम' चन्द्रविचारनिरोधो वा एवं जान फार्सिदियविसयआदियों का सेवन करना - इस प्रकार से प्रतिसंलीनता चार प्रकार कीहै। 'से मिं में इंदिण्पडिलीणया' इन्द्रियप्रति संलीनता कितने प्रकार की है उसमें प्रश्री कहते है- 'इंडियपडिलेलीणया पंचविता पण्णत्ता' इन्द्रियप्रतिरंलीनता पांच प्रकार की कही गई है । 'तं जहां' जैसे - 'लोइदिन विराटपवारणिरोहो ना' श्रोत्रेन्द्रिय का इष्टानिष्ट शब्दरूप विप में जो सुनने की प्रवृत्ति रूपव्यापार है उसका विरोध करना यह श्रोत्रेन्द्रिय प्रचार निरोध है । तथा 'सोइंदिय विसम्पत्तेसु वा अत्थेसु रागदोला जिन्हो' श्रोत्रेन्द्रियके विषय रूप से प्राप्त हुए इष्टानिष्ट शब्दों में राम का निरोध करना 'चखिदियवितय पवारणिरोहो वा' चक्षु इन्द्रिय का विषयों में वर्णों में जो देखने की प्रवृत्तिरूप व्यापार है उन विरोध करना तथा चक्षुहन्द्रियके विषयरूप से व्याप्त
નિર્દોષ શય્યા વિશેનું સેવન કરવું તેનું નામ ‘વિવિક્ત શયનાસન પ્રતિसौंसीनता छे.' या अारनी या प्रतिससीनता यार प्रहारनी छे, 'से कि त ' इंदिप डिसंलीणया' इन्द्रिय अतिस सीनता डेटा अारनी उही हे ? या प्रश्ननां उत्तरभां अलुश्री गौतमस्वामीने हे छे - 'इंदियपडिसखीणया पंचदिहा पण्णचा ' धन्दिय अतिस बीनता पांय प्राश्नी हे छे. 'त' जहा' ते या प्रमाये छे. 'खोइंदियविसयत्पारणिरोहो वा' श्रोत्रेन्द्रियनो ईष्ट के अनिष्ट शब्द ३५ विष ચેમાં સાંભળવાની વૃત્તિ રૂપ જે વ્યાપાર છે, તેના નિરોધ કરવા તેનું નામ श्रोत्रेन्द्रिय अयार निशेध है, तथा 'खोइदियविसप्पत्तेसु वा अत्येमु रागदों विणिगादो' श्रोत्रेन्द्रियता विषय ३५धी प्राप्त थयेला दृष्टि अनिष्ट शोभां रागद्वेषतेो निशेष उवो 'ए' चक्लिदियविख्यापयारणिरोहो वा' न प्रभाथे ચક્ષુઈન્દ્રિયેના વિષયામાં વહે મા લેવાની પ્રવૃત્તિ રૂપ જે વ્યાપાર છે, તેના નિરોધ કરવા તથા ક્ષુઇન્દ્રિયના વિષય રૂપ વ્યાપારવાળા ઈષ્ટ અનિષ્ટ વર્તામાં
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