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प्रमेयचन्द्रिका टोका श०२५ उ.७ सू०९ प्रायश्चित्तप्रकारनिरूपणम् संलीनता चतुर्विधा प्रज्ञप्ता, 'तं जहा' तद्यथा-'कोहोदयणिरोहो वा, उदयपत्तस्स वा कोहस्स विफलीकरणे' क्रोधोदयनिरोधो वा यावत्क्रोधस्योदय एव न भवेत् अथवा उदयप्राप्तस्य कार्यकरणाभिमुखीभूतस्य विफलीकरणम् यावता उदितोऽपि क्रोधः स्वकार्याय न पर्याप्तो भवेदिति । 'एवं जाव लोभोदयगिरोहो वा उदयपत्तस्स वा लोसस्स विफलीकरणं' एवं यावद्लोभोदयनिरोधो वा उदयमाप्तस्थ वा लोभस्य विफलीकरणम्-निष्लतासंपादनम् । यावत्पदेन मानमाययोग्रहणम् तथा च मानोदयनिरोधो वा उदयपाप्तस्य मानस्य विफलीकरणम् एवं मायोदयनिरोधो बा उदयप्राप्ताया मायाया विफलीकरणंवेति । 'सेत्तं कसायपडिसंलोणया' सैषा कपायमतिसंलीनतेति भावः । 'से कि त जोग. पडिसंलीणया' अथ का सा योगपतिसंलीनता मनोवाकायानां गोपनमिति प्रश्ना, पण्णत्ता' हे गौतम ! याषायप्रतिसंलीनता चार प्रकार की कही है 'कोहोदयणिरोहो वा उदयपत्तस्ल वा कोहस्स विफलीकरण' क्रोध के उदय का निरोध करना अथवा उदय प्रात क्रोध को अपने कार्य करने में विफल करना एवं जाव लोलोदय गिरोहो वा उद्यपत्तस्स वालोभस्त विफली करणं' इसी प्रकार ले यावत् लोभ के उद्य का निरोध करना लोभ को आत्मा में नहीं होने देना-अथवा उदय प्राप्त लोभ को उसके कार्य करने में विफल बनाना यहां यावत्पद से मान माया का ग्रहण हुआ है -तथा च-मान के उद्घका निरोध करना अथवा उदित मान को उसके कार्य करने से विफल करना, इसी प्रकार माया के उद्य का निरोध करना
और उदित हुए माया कषाय को उसके कार्य करने से रोकना यह सब कषायप्रतिसंलोनता है। ‘से कि तं जोगपडिसंलोणया' हे भदन्त ! योग प्रतिसंलीनता कितने प्रकार की है ? उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-गौतम । 'कोहोदयगिरोहो वा उदयपत्तस्स वा कोहस्स विफलीकरण' लोधन यानिशेष કરે અથવા ઉદયમાં આવેલા ક્રોધને તેના કાર્યથી નિષ્ફળ બનાવ “gs जाव लोभोदयनिरोहो वा उदयपत्तस्स वा लोभस्स बिफलीकरणं' से शत यावत લેભના ઉદયને નિરોધ કરે-ભને પિતાનામાં થવા ન દે અથવા ઉદયમાં આવેલા લેમને તેના કાર્યથી નિષ્ફળ બનાવવો તથા યાત્મદથી માનના ઉદયને નિશધ કરે અને ઉદયમાં આવેલા માનને તેના કાર્યથી નિષ્ફળ બનાવ એજ પ્રમાણે માયાના ઉદયને નિરોધ કર. અને ઉદયમાં આવેલ માયા કષાયને તેના કાર્ય કરવાથી રેક આ બધાને કષાય પ્રતિસંલીનતા इ छ, 'से कि त जोगपडिसंलोणया' सगवन् यो प्रतिमानता eat